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विवेक-चूडामणि
ब्रह्मनिष्ठाका महत्त्व जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंस्त्वं ततो विप्रता तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम् । आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रमात्मना संस्थितिमुक्तिों शतकोटिजन्मसु कृतैः पुण्यविना लभ्यते ॥२॥
जीवोंको प्रथम तो नरजन्म ही दुर्लभ है, उससे भी पुरुषत्व और उससे भी ब्राह्मणत्वका मिलना कठिन है; ब्राह्मण होनेसे भी वैदिक धर्मका अनुगामी होना और उससे भी विद्वत्ताका होना कठिन है। [यह सब कुछ होनेपर भी ] आत्मा और अनात्माका विवेक, सम्यक् अनुभव,ब्रह्मात्मभावसे स्थिति और मुक्ति--ये तो करोड़ों जन्मोंमें किये हुए शुभ कर्मोके परिपाकके बिना प्राप्त हो ही नहीं सकते।
त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम् । मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः॥३॥
भगवत्कृपा ही जिनकी प्राप्तिका कारण है वे मनुष्यत्व, मुमुक्षुत्व ( मुक्त होनेकी इच्छा ) और महान् पुरुषोंका संग-ये तीनों ही दुर्लभ हैं। लब्ब्चा कथञ्चिन्नरजन्म दुर्लभं
तत्रापि पुंस्त्वं श्रुतिपारदर्शनम् । यः स्वास्ममुक्तो न यतेत मूढधीः
स यात्महास्वं विनिहन्त्यसद्ग्रहात् ॥४॥
दुर्लभ
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