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विवेक-चूडामणि
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( हितैषी ) हों उन गुरुदेवकी विनीत और विनम्र सेवासे भक्तिपूर्वक आराधना करके, उनके प्रसन्न होनेपर निकट जाकर अपना ज्ञातव्य इस प्रकार पूछे
स्वामिन्नमस्ते नतलोकबन्धो कारुण्यसिन्धो पतितं भवाब्धौ ।
मामुद्धरात्मीयकटाक्षदृष्टया
ऋज्यातिका रुण्यसुधाभिवृष्टया ||३७||
हे शरणागतवत्सल, करुणासागर, प्रभो ! आपको नमस्कार है । संसार - सागर में पड़े हुए मेरा आप अपनी सरल तथा अतिशय कारुण्यामृतवर्षिणी कृपाकटाक्षसे उद्धार कीजिये ।
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दुर्वारसंसारदवाग्नितप्तं दोधूयमानं भीतं प्रपन्नं परिपाहि मृत्योः
दुरदृष्टवातैः ।
शरण्यमन्यं यदहं न जाने ॥ ३८ ॥
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जिससे छुटकारा पाना अति कठिन है उस संसार- दावानल से दग्ध तथा दुर्भाग्यरूपी प्रबल प्रभञ्जन ( आँधी) से अत्यन्त कम्पित और भयभीत हुए मुझ शरणागतकी आप मृत्युसे रक्षा कीजिये; क्योंकि इस समय मैं और किसी शरण देनेवालेको नहीं जानता ।
शान्ता महान्तो निवसन्ति सन्तो
वसन्तवल्लोकहितं तीर्णाः स्वयं भीमभवार्णवं जनानहेतुनान्यानपि
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चरन्तः ।
तारयन्तः ||३९||