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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ—( लोयस्सुज्जोययरे ) लोक में उद्योत को करने वाले ( धम्म तित्थंकरे ) धर्म तीर्थ के कर्ता ( जिणे ) जिनेन्द्र देव में ( वंदे ) वन्दना करता हूँ। ( चौवीसं अरहते ) अरहंत पदविभूषित चौबीसभगवंतों ( वेव ) और इसी प्रकार ( केवलिणो ) केवली भगवंतों का { कित्तिस्से ) कीर्तन करूंगा। ___ भावार्थ-अपनी केवलज्ञानरूप ज्योति से तीन लोक को प्रकाशित करने वाले, धर्मतीर्थ के कर्ता चौबीसों तीर्थंकर, जो अरहंत पद से सुशोभित हैं उनका तथा सर्व केवली भगवंतों का मैं कीर्तन/गुणगान करूँगा।
उसह मजियं च वन्दे संभव-मभिणंदणं च सुमई च । पउमप्यहं सुपासं जिणं च चंदप्पहं वन्दे ।।३।।
अन्वयार्थ ( उसहं ) वृषभनाथ तीर्थंकर को ( अजियं ) अजितनाथ तीर्थकर को ( वंदे ) मैं नमस्कार करता हूँ। ( च ) और ( संभव ) संभवनाथ ( अभिणंदण ) अभिनन्दननाथ ( च ) और ( सुमई ) सुमतिनाथ ( च )
और ( पउमप्पहं ) परप्रभ ( सुपास ) सुपाश्वं ( गणे) जिनेन्द्र (च) और ( चंदप्पहं ) चन्द्रप्रभ तीर्थकर को ( वंदे ) मैं नमस्कार करता हूँ।
भावार्थ-मैं वृषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ और चन्द्रप्रभ तीर्थंकरों की वन्दना करता हूँ।
सुविहिं च पुष्फयंतं सीयल सेयं च वासुपुज्ज छ। विमल-मणंतं मयवं धम्म संतिं च वंदामि ।।४।।
अन्वयार्थ- ( सुविहिं ) सुविधि ( च ) अथवा ( पुप्फयंत ) पुष्पदन्त ( सीयल ) शीतल ( सेयं ) श्रेयांस ( च ) और ( वासुपुज्जं ) वासुपूज्य (विमलं ) विमलनाथ ( अणंतं ) अनन्त ( भयवं) भगवान् को (च)
और ( धम्म ) धर्मनाथ ( संति ) शांतिनाथ भगवान् को ( बंदामि ) मैं नमस्कार करता हूँ।
भावार्थ---मैं पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्यनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ तीर्थकरों को नमस्कार करता हूँ।
कुंथु च जिण वारिंदं अरंच मल्लिं च सुव्वयं च णमि । बदामिरिह-णेमिं तह पासं वडमाणं च ।।५।।