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रणसिंह का चरित्र
श्री उपदेश माला
क्यों आया? ऐसी आज्ञा देने से पहले मेरी जीभ के सो टुकड़े क्यों नही हुए? ऐसा अकार्य करने से पहले मेरे सिर पर ब्रह्मांड क्यों नही तूटा ? अहो ! बिन विचारे कार्य करने पर महान् अनर्थ होता है। नीति शास्त्र में भी कहा है
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदं ।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ।। सहसा बिना विचारे कोई कार्य नहीं करना चाहिए, अविवक के कारण आपत्तियाँ आ जाती है और विचार कर कार्य करने वाले को गुणों से आकर्षित संपत्तियाँ स्वयमेव वरण करती है प्राप्त हो जाती हैं।
अब शोक करने से लाभ नही है। परंतु यह किसने किया ऐसा विचार करते उसने गंधमुषिका का आगमन सुना, विचार किया कि यह वास्तव में उसका ही आचरण है। निश्वास छोड़ते हुए कुमार ने सोचा यह सब गंधमुषिका का कार्य है।
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इधर गंधमूषिका सोमा नगरी आयी और रत्नवती के आगे कमलवती का स्वरूप कहा। यह सुनकर रत्नवती खुश हुई और रणसिंहकुमार को वहाँ बुलाने के लिए पिता से कहलाया ।
रणसिंहकुमार के साथ अपनी पुत्री का विवाह करने के लिए, पुरुषोत्तम राजा ने कनकपुर नगर में अपने सेवक भेजें। कनकशेखर राजा के आग्रह से कुमार ने यह बात स्वीकार की। शुभ मुहुर्त तथा शुभ दिवस में कुमार ने सैन्य के साथ प्रयाण किया। शुभ शकुनों से प्रेरित होता हुआ पाडलीखंडपुर पहुँचा। कमलवती की अन्वेषणा करता हुआ चक्रधर गाँव समीप के उद्यान में पहुँचा। जब वह चक्रधर देव की पूजा करने निकला तब उसकी दायी आँख फड़कने लगी। इतने में ही देवपूजारी ने कुमार के हाथों में पुष्प लाकर दीये । कुमार ने उसे उचित मूल्य दिया। फिर देवपूजक ने सोचा यह रणसिंहकुमार रत्नवती से शादी करने के लिए जा रहा दिखता है। कमलवती कुमार को देखकर अतीव हर्षित हुई, कुमार भी पुष्पबटुक वाली कमलवती को बार-बार देखते हुए इस प्रकार सोचता है। यह प्राणवल्लभा कमलवती के जैसा दिखायी देता है। इस के दर्शन से मेरा मन अत्यंत हर्षित हुआ है। इस प्रकार सोचता हुआ विस्मय पूर्वक बार-बार देखता हुआ तृप्त न हुआ। कमलवती भी स्नेहवश अपने पति को देखती थी। फिर कुमार बटुक के साथ अपने आवास में आया। भोजनादि से भक्तिपूर्वक सम्मानित कर बटुक को अपने सामने बिठाकर कुमार ने कहा - है बटुक ! तेरा शरीर बार-बार सम्यक् प्रकार से देखने पर भी मुझे तृप्ति नहीं होती है । अत्यंत प्रिय तेरा दर्शन लगता है। बटुक ने कहा -- स्वामि ! यह सत्य है
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