Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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यथा - शरद् के शुभ्र मेघ-सा मदोन्मत्त हाथी, स्फटिक शिला से विद्युत् धवल वृष, सघन केशरयुक्त केशरी सिंह, युग्म हस्तियों द्वारा अभिषिक्त श्री देवी, सान्ध्यमेघ की शोभा को हरने वाली पंचवर्णीय पुष्पों से गुथी माला, दर्पण-सा रूपहला पूर्ण चन्द्र, तिमिर हरणकारी सूर्य जिसके द्वारा दूर होता है अंधकार, घुंघरू लगे और पताका से सुशोभित होता ध्वज दण्ड, कमल द्वारा प्राच्छादित स्वर्ण- कुम्भ, कमल द्वारा शोभित प्रफुल्लित सरोवर, हस्त प्रमाण तरंगों से उल्लसित क्षीर-समुद्र, रत्ननिर्मित प्रासाद, जिसे पहले किसी ने न देखा हो ऐसा नागों द्वारा रक्षित रत्न तुल्य रत्न-राशि, प्रभात सूर्य-सी निर्धूम अग्निशिखा । ( श्लोक ११५ - १२२ ) जागृत होकर रानी ने उन स्वप्नों का विवरण राजा को बताया । राजा बोले - ' इससे लगता है तुम त्रिलोक वन्दनीय पुत्र को जन्म दोगी ।' ( श्लोक १२३ )
सिंहासन कम्पित होने पर इन्द्र वहां प्राए श्रौर सेनादेवी को स्वप्नों का अर्थ बताया। बोले- 'हे देवी, इस अवसर्पिणी के तीसरे तीर्थङ्कर श्रापके पुत्र रूप में जन्म लेंगे ।' स्वप्न अर्थ को सुनकर जिस प्रकार मेघ घोष से मयूर प्रानन्दित हो जाता है उसी प्रकार आनन्दित हो उठीं महारानी सेना । उन्होंने शेष रात्रि जागृत रह कर ही प्रतिवाहित की । ( श्लोक १२४-१२६ ) रत्न खान की मिट्टी जिस प्रकार हीरों को वहन करती है, आलोक वर्तिका अग्नि को, उसी भांति सेनादेवी अपने पवित्र गर्भ को वहन कर रही थीं। गंगा-जल में जिस प्रकार स्वर्ण कमल वद्धित होता है उसी भांति गर्भ में वह भ्रूण वर्द्धित होने लगा । रानी की प्रांखें ईषत् लाल हो उठीं । शरद् ऋतु के प्रभात से सरोवर का कमल जिस प्रकार देखने में सुन्दर होता है उसी प्रकार भ्रूण के प्रभाव से रानी का सौन्दर्य, स्तनों का विस्तार और गति की मृदुता दिनोंदिन वृद्धिगत होने लगी । ( श्लोक १२७-१३०) आकाश जिस प्रकार लोक-प्रानन्द के लिए मेघ को धारण करता है उसी प्रकार उन्होंने भी फाल्गुन मास की शुक्ल अष्टमी को गर्भ धारण किया और नो मास साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर ग्रहण शुक्ला चतुर्दशी को जब चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र पर अवस्थित था सहज भाव से एक पुत्र को जन्म दिया । शिशु जन्म