Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
[७
कर्म की और अभिवृद्धि की। परिषहों को सहन करते हुए सदैव जागृत प्रहरी की तरह उन्होंने अपना समय व्यतीत किया । अन्ततः अनशन में मृत्यु प्राप्त कर उन्होंने प्रानत नामक स्वर्ग की प्राप्ति की। सामान्य दीक्षा परिणाम में निर्वाण रूप फल प्रदान करने वाली सिद्ध हुई।
(श्लोक ९७-१०२) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के अलंकार रूप श्रावस्ती नामक एक समृद्धिशाली नगरी थी। शत्र प्रों को जय करने के कारण जिनका जितारि नाम सार्थक था ऐसे राजा वहां राज्य करते थे । वे इक्ष्वाकु कुल रूपी क्षीर समुद्र के लिए चन्द्र-तुल्य थे। वन्य-पशुओं में जिस प्रकार सिंह और पक्षियों में बाज है उसी प्रकार राजामों में उनके समकक्ष या उनसे अधिक कोई नहीं था। कक्ष पथ में प्रवेशकारी ग्रह सहित चन्द्र की तरह राजा अपने सेवाकारी राजन्य के मध्य शोभित होते थे। जो धर्म-संगत नहीं हो ऐसा वे कदापि न बोलते थे, न करते थे, न सोचते थे । वे साक्षात् धर्म रूप ही थे।
(श्लोक १०३-१०७) राजा के रूप में वे अपराधी को दण्ड और दरिद्रों को धन देने के लिए थे; किन्तु उनके राज्य में न कोई अपराधी था न दरिद्र । वे हाथ में अस्त्र धारण मात्र करते थे; परन्तु वे परम कारुणिक, समर्थ प्रौर सहिष्णु, ज्ञानी और छल-कपट रहित थे । वे यौवन सम्पन्न थे; किन्तु इन्द्रिय निग्रह में सक्षम थे । उनकी प्रधान पटरानी सेना का नाम भी सार्थक था। वे थीं धर्म रूप सेना की सेनापति, सौन्दर्य की प्राकर । संसारी जीवों की किसी भी प्रकार की हिंसा न कर चन्द्र जैसे रोहिणी के साथ क्रीड़ा करता है राजा भी उसी प्रकार उनके साथ क्रीड़ा करते थे। (श्लोक १०८-१११)
राजा विपुलवाहन का जीव मानत नामक स्वर्ग का आयुष्य पूर्ण कर वहां से च्युत होकर फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को चन्द्र जब मृगशिरा पर अवस्थित था महारानी सेना के गर्भ में प्रवेश किया। मुहर्त मात्र के लिए नारकी जीवों ने भी उस समय अानन्द की अनुभूति की एवं तीनों लोक में विद्युत प्रालोकसा एक प्रालोक व्याप्त हो गया ।
(श्लोक ११२-११४) निद्रित अवस्था में रानी सेना देवी ने रात्रि के शेष भाग में चौदह स्वप्नों को अपने कमल तुल्य मुख में प्रवेश करते देखा ।