________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-३ .नन्वेवं प्रसिद्धोऽपि परापरगुरुप्रवाहः कथं तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिकप्रवचनस्य सिद्धिनिबंधनं यतस्तस्य ततः पूर्वमाध्यानं साधीय इति कश्चित्, तदाध्यानाद्धर्मविशेषोत्पत्तेरधर्मध्वंसात्त तुकविघ्नोपशमनादभिमतशास्त्र- परिसमाप्तितस्तत्सिद्धिनिबंधनमित्येके। तान् प्रति समादधते। तेषां पात्रदानादिकमपि शास्त्रारंभात् प्रथममाचरणीयं परापर-गुरुप्रवाहाध्यानवत्तस्यापि धर्मविशेषोत्पत्तिहेतुत्वाविशेषाद्यथोक्तक्रमेण शास्त्रसिद्धिनिबन्धनत्वोपपत्तेः।। - परममंगलत्वादाप्तानुध्यानं शास्त्रसिद्धिनिबन्धनमित्यन्ये, तदपि तादगेव। सत्पात्रदानादेरपि मंगलतोपपत्तेः। न हि जिनेन्द्रगुणस्तोत्रमेव मंगलमिति नियमोऽस्ति स्वाध्यायादेरेव मंगलवाभावप्रसंगात्। ____ परमाप्तानुध्यानाद्ग्रंथकारस्य नास्तिकतापरिहार-सिद्धिस्तद्वचनस्यास्तिकैरादरणीयत्वेन सर्वत्र ख्यात्युपपत्तेस्तदाध्यानं तत्सिद्धिनिबंधनमित्यपरे। - शंका - इस प्रकार आपने पर और अपर गुरु का प्रवाह तो सिद्ध किया परन्तु उनका ध्यान श्लोकवार्त्तिक ग्रन्थ की सिद्धि का कारण कैसे हो सकता है? जिससे कि उनका चिन्तन श्लोकवार्तिक की रचना के पूर्व किया जाय। दूसरा प्रतिवादी (नैयायिक) कहता है कि पर और अपर गुरु का ध्यान करने से धर्म विशेष (पुण्य) की उत्पत्ति होती है, अधर्म (पाप) का विनाश होता है; उससे शास्त्र की परिसमाप्ति में आने वाले विघ्नों का उपशमन होता है और अभीष्ट शास्त्र की समाप्ति निर्विघ्न होती है। इसलिए पर और अपर गुरु का ध्यान तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक की रचना की सिद्धि का कारण है। इस प्रकार कहने वाले के प्रति कोई समाधान करते हैं कि यदि पर-अपर गुरु के ध्यान से विघ्नों का नाश होता है तो उसके समान शास्त्र के प्रारम्भ में पात्रदान आदि का भी पहले आचरण करना चाहिए - क्योंकि पर-अपर गुरु के प्रवाह के ध्यान के समान पात्रदानादिक से भी पुण्य की उत्पत्ति, पाप का नाश, तद्हेतुक विघ्नों का उपशमन आदि होता है अत: पात्रदानादि के भी शास्त्र की सिद्धि-रूप कार्य का होना बन जावेगा। परम मंगल कार्य होने से आप्त का ध्यान करना शास्त्र की सिद्धि का कारण है; ऐसा अन्य कहते हैं। उनका यह कथन भी ऊपर के कथन के समान ही अनुपयुक्त है अर्थात् मंगल रूप होने से आप्त का ध्यान शास्त्रसिद्धि का कारण नहीं है, क्योंकि सत्पात्रदानादि के भी मंगलपना पाया जाता है। केवल जिनेन्द्र के गुणों का स्तवन ही मंगल रूप है, ऐसा नियम नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर स्वाध्याय आदि के मंगलपने के अभाव का प्रसंग आता है। ___ कोई अन्य कहते हैं कि यथार्थ वक्ता गुरुओं के ध्यान से ग्रन्थकार के नास्तिकता का परिहार सिद्ध होता है, तथा आस्तिक पुरुषों के द्वारा उस ग्रन्थकार के वचन आदरणीय होने से सर्वत्र उसकी ख्याति होती है, अतः आप्त का ध्यान शास्त्र की सिद्धि का कारण है।