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विषयसूची
४९६
४७८
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समय
८
२८२
३११
निर्जराका वर्णन २७५-२७६ ४७७ । स्वाध्यायके पांच भेद ३०४-३०५ प्रदेशबन्धका स्वरूप २७६-२७७ .४७७ । व्युत्सर्ग के दो भेद पुण्यकर्मकी प्रकृतियाँ
ध्यानका स्वरूप और समय ३०५-३०६ ४९७ पापकर्मकी प्रकृतियाँ
४७८ ध्यान के भेद
३०६ ४९७
आर्तध्यानके भेद और स्वरूप नवम अध्याय
३०७ आर्तध्यानका स्वामी
४९८ संवर का लक्षण
२७९
रौद्रध्यानका स्वरूप और स्वामी ३०८ मिथ्यात्व आदि गण स्थानोंमें किन
धर्म्यध्यानका स्वरूप किन कर्म प्रकृतियों का संवर होता है २७९-२८० ४७९-८०
शुक्लध्यानके स्वामी
शक्लध्यानके भेद गुण स्थानोंका स्वरूप और
किस शुक्लध्यानमें कौनसा
२८१,२८२ ४८० संवरके कारण
योग होता है ४८२
३१०-३११
प्रथम और द्वितीय शक्ल- ... संवर और निर्जरा का . कारण तप २८३
ध्यानोंकी विशेषता __४८२
५०० गुप्तिका स्वरूप
वितर्कका लक्षण . २८३ ४८२
५०१
वीचारका लक्षण समितिका स्वरूप और भेद २८३-२८४ .४८३ धर्मके भेद और स्वरूप
सम्यग्दृष्टि आदि जीवोंमें २८४-२८५ ४८३-८४
निर्जराकी विशेषता ३१३-३१४ ५०२ बारह भावनाओंका स्वरूप २८६-२९० ४८४-८६
निर्ग्रन्थके भेद .. ३१४-३१५ - ५०३ परीषह सहन का उपदेश २९१ ४८६
पुलाक आदि निर्ग्रन्थोंमें परपरीषहके भेद और स्वरूप २९१-२९५ ४८७-८९
स्पर भेदके कारण ३१५-३१७ ५०४-५०५ किस गुणस्थानमें कितनी
दशम अध्याय परीषह होती है २९६-२९८ ४८९-४९१ .
केवलज्ञान उत्पत्तिके कारण ३१८-३१९ ५०६ किस कर्मके उदयसे कौनसी
मोक्षका स्वरूप और कारण ३१९-३२० ५०६-५०७ परीषह होती है
मुक्तजीवके किन किन अएक जीवके एक साथ कितनी
साधारण भावोंका नाश परीषह हो सकती है
.४९१ हो जाता है
३२०-३२१ ५०८ चारित्रके भेद और स्वरूप २९९-३०० ४९२ - मुक्त होने के बाद जीव ऊर्ध्वबाह्यतपके छह भेद ३००-३०१ ९३ गमन करता है
५०० अंतरंगतपके छह भेद
४९३ ऊर्ध्वगमनके हेतु ३२१-३२२ अन्तरंगतपके प्रभेद
४९४ ऊर्ध्वगमनके विषयमें दृष्टान्त ३२२-३२३ ५०८ प्रायश्चितके नौ भेद और ...
मुक्तंजीव लोकके अन्तमें ही क्यों स्वरूप . ३०२-३०३
टहर जाता है, विनयके चार भेद
४९५ । मुक्तंजीवोंमें परस्पर भेदवैयावृत्यके दश भेद
३०४
व्यवहारके कारण ३२३-३२५ ५०९-५११
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