________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चतुर्थ अध्याय
देवोंके भेद
देवाश्चतुर्णिकायाः ॥ १॥ देवोंके चार भेद हैं-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी।
देवगति नाम कर्मके उदय होनेपर और नाना प्रकारकी विभूति युक्त होनेके कारण जो द्वीप, समुद्र,पर्वत आदि स्थानोंमें अपनी इच्छानुसार क्रीड़ा करते हैं उनको देव कहते हैं । जातिकी अपेक्षा 'देवाश्चतुर्णिकायः' ऐसा एकवचनान्त सूत्र होनेपर भी काम चल जाता फिर भी सूत्रमें बहुवचनका प्रयोग प्रत्येक निकायके अनेक भेद बतलानेके लिये किया गया है।
देवोंमें लेश्याका वर्णन
आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्याः ॥२॥ भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके कृष्ण, नील, कापोत और पीत ये चार लेश्याएँ ही होती हैं।
निकायोंके प्रभेददशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः ॥ ३॥ भवनवासी देवोंके दश भेद, व्यन्तर देवोंके आठ भेद,ज्योतिषी देवोंके पाँच भेद और कल्पोपपन्न अर्थात् सोलहवें स्वर्गतकके देवोंके बारह भेद होते हैं। ग्रेवेयक आदिमें सब अहमिन्द्र ही होते हैं इसलिये वहाँ कोई भेद नहीं है।
___ देवोंके सामान्य भेदइन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषदात्मरक्षलोकपालानीकप्रकीर्ण
काभियोग्यकिल्लिषिकाश्चैकशः ॥ ४ ॥ प्रत्येक निकायके देवोंमें इन्द्र, स निक, त्रायस्त्रिंश, पारिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किस -ये दश भेद होते हैं।
इन्द्र-जो अन्य देवोंमें नहीं रहनेवाली अणिमा आदि ऋद्धियोंको प्राप्तकर असाधारण ऐश्वर्यका अनुभव करते हैं उनको इन्द्र कहते हैं।
सामानिक-आज्ञा और ऐश्वर्यको छोड़कर जिनकी आयु, भोग, उपभोगादि इन्द्र के ही समान हों उनको सामानिक कहते हैं।
त्रायस्त्रिंश-मंत्री और पुराहितके कामको करनेवाले देव त्रायस्त्रिंश. कहलाते हैं । ये संख्यामें तेंतीस होते हैं।
पारिषद-सभामें बैठनेके अधिकारी देवोंको पारिषद कहते हैं। आत्मरक्ष-इन्द्रकी रक्षा करनेवाले देव आत्मरक्ष कहलाते हैं।
लोकपाल-जो देव अन्य देवोंका पालन करते हैं उन्हें लोकपाल कहते हैं । ये आरक्षिक, अर्थचर और कोट्टपालके समान होते हैं । जो ग्राम आदिकी रक्षाके लिये नियुक्त
For Private And Personal Use Only