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५/२५-२६ ] पश्चम अध्याय
४२७ विकारात्मक छाया है। और चन्द्र आदिका जलमें जो प्रतिबिम्ब होता है वह प्रतिबिम्बास्मक छाया है।
सूर्य, चह्नि आदिमें रहनेवाली उष्णता और प्रकाशका नाम आतप है। चन्द्रमा, मणि, खद्योत (जुगुनू ) आदिसे होनेवाले प्रकाशको उद्योत कहते हैं।
उक्त शब्द आदि दश पुद्गल द्रव्यके विकार या पर्याय हैं। सूत्र में 'च' शब्दसे अभिघात, नोदन आदि अन्य भी पुद्गल द्रव्यके विकारोंका ग्रहण कर लेना चाहिये।
पुद्गलके भेद
अणवः स्कन्धाश्च ॥ २५ ॥ पुद्गल द्रव्यके दो भेद हैं-अणु और स्कन्ध । अणुका परिमाण आकाशके एक प्रदेश प्रमाण है । यद्यपि परमाणु प्रत्यक्ष नहीं हैं लेकिन उसका स्कन्धरूप कार्यों को देखकर अनुमान कर लिया जाता है।
परमाणुओंमें दो अविरोधी स्पर्श, एक वर्ण, एक गन्ध और एक रस रहता है, ये स्वरूपकी अपेक्षासे नित्य हैं लेकिन स्पर्श आदि पर्यायोंकी अपेक्षासे अनित्य भी हैं। इनका परिमाण परिमण्डल ( गोल ) होता है। नियमसारमें परमाणुका स्वरूप इस प्रकार बतलाया है
___ "जिसका वही आदि,वही मध्य और वही अन्त हो,जो इन्द्रियोंसे नहीं जाना जा सके ऐसे अविभागी द्रव्यको परमाणु कहते हैं ।"
स्थूल होनेके कारण जिनका ग्रहण, निक्षेपण आदि हो सके ऐसे पुद्गल परमाणुओं के समूहको स्कन्ध कहते हैं। ग्रहण आदि व्यापारकी योग्यता न होने पर भी उपचारसे द्वयएक आदिको भी स्कन्ध कहते हैं।
यद्यपि पुद्गलके अनन्त भेद हैं लेकिन अणुरूप जाति और स्कन्धरूप जातिकी अपेक्षा से दो भेद भी हो जाते हैं।
प्रश्न-जातिमें एकवचन होता है फिर सूत्र में बहुवचनका प्रयोग क्यों किया ?
उत्तर-अणु और स्कन्धके अनेक भेद बतलानेके लिये बहुवचनका प्रयोग किया गया है।
___ यद्यपि 'अणुस्कन्धाश्च' इस प्रकार एक पदवाले सूत्रसे ही काम चल जाता लेकिन पूर्वके दो सूत्रोंमें भेद बतलानेके लिये 'अणवः स्कन्धाश्च' इस प्रकार दो पदका सूत्र बनाना पड़ा । 'स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः' इस सूत्रका सम्बन्ध केवल अणुसे है अर्थात् परमाणुओंमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पाये जाते है । लेकिन स्कन्धका सम्बन्ध स्पर्शरस' इत्यादि ।
और 'शब्दबन्ध' इत्यादि दोनों सूत्रोंसे है । स्कन्ध स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण वाले होते हैं तथा शब्द, बन्ध आदि पर्यायवाले भी होते हैं।
इस सूत्रमें 'च' शब्द समुच्चयार्थक है । अर्थात् अणु ही पुद्गल नहीं हैं किन्तु स्कन्ध भी पुद्गल हैं। निश्चयनयसे परमाणु ही पुद्गल हैं और व्यवहारनयसे स्कन्धभी पुद्गल हैं।
स्कन्धोंकी उत्पत्तिका कारण
भेदसङ्घातेभ्य उत्पद्यन्ते ॥२६॥ स्कन्धोंकी उत्पत्ति भेद, संघात और दोनोंसे होती है । भेद अर्थात् विदारण जुदा होना,संघात अर्थात् मिलना इकट्ठा होना ।
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