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४७२ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[८१११ शरीर नाम कर्मके उदयसे ग्रहण किये गये पुद्गलस्कन्धोंका परस्परमें सम्बन्ध जिस के उदयसे होता है वह बन्धन नाम कर्म हैं। इसके पाँच भेद हैं--१ औदारिकशरीरबन्धननाम, २ वैक्रियिकशरीरबन्धननाम, ३ आहारकशरीरबन्धननाम, ४ तेजसशरीरबन्धननाम और ५ कार्मणशरीरबन्धननाम ।
जिसके उदयसे शरीरके प्रदेशोंका ऐसा बन्धन हो कि उसमें एक भी छिद्र न रहे और वे प्रदेश एकरूप हो जाँय उसको संघात नामकर्म कहते हैं। इसके पाँच भेद हैं--१ औदारिकशरीरसंघातनाम, २ वक्रियिकशरीरसंघातनाम, ३ आहारकशरीरसंघातनाम, ४ तेजसशरीरसंघातनाम और ५ कामणशरीरसंघातनाम ।
जिसके उदयसे शरीरके आकारकी रचना होती है वह संस्थान नामकम है। इसके छह भेद हैं-१ समचतुरस्रसंस्थान, २ न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान,३ स्वातिसंस्थान, ४ कुब्जक संस्थान, ५ वामनसंस्थान और ६ हुंडकसंस्थान । जिसके उदयसे शरीरकी रचना ऊपर, नीचे और मध्यमें समान रूपसे हो अर्थात मध्यसे ऊपर और नीचेके भाग बराबर हों, छोटे या बड़े न हों वह समचतुरस्रसंस्थान है। जिसके उदयसे नाभिसे ऊपर मोटा और नीचे पतला शरीर हो वह न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान है। जिसके उदयसे नाभिसे ऊपर पतला
और नीचे मोटा शरीर हो वह स्वातिसंस्थान है । इसका दूसरा नाम वल्मीक संस्थान है। जिसके उदयसे पीठमें पुद्गल स्कन्धोंका समूह ( कूबड़ ) हो जाय वह कुब्जकसंस्थान है। जिसके उदयसे बौना ( छोटा ) शरीर हो वह वामनसंस्थान है । जिसके उदयसे शरीरके अंगोपागोंकी रचना ठीक रूपसे न हो वह हुण्डकसंस्थान है।
जिसके उदयसे हड्डियों में बन्धनविशेष होता है उसको संहनन कहते है। संहननके छह भेद हैं-वनवृषभनाराचसंहनन, २ वज्रनाराचसंहनन, ३ नाराचसंहनन, ४ अर्द्धनारासंहनन, ५ कीलकसंहनन और ६ असंप्राप्तासपाटिकासंहनन । जिसके उदयसे वज्रकी हड्डियां हो तथा वे सनाराच ( हड्डियोंके दोनों छोर आपसमें आँकड़ेकी तरह फंसे हों) और वृषभ अर्थात् वलयसे जकड़ी हों वह वज्रवृषभनाराचसंहनन है । जिसके उदयसे वज्रकी हड़ियाँ आपसमें आँकड़ेकी तरह फंसी तो हों पर उनपर वलय न हों । उसे वज्रनाराचसंहनन कहते हैं। जिसके उदयसे साधारण हड्डियाँ दोनों ओरसे एक दूसरे में फंसी हों उसको नाराचसंहनन कहते हैं। जिसके उदयसे हड्डियाँ एक ओरसे दूसरी हड्डीमें फंसी हों पर एक ओर साधारण हों उसको अर्धनाराचसंहनन कहते हैं। जिसके उदयसे हडिडयाँ परस्पर फंसी तो न हों पर परस्पर कीलित हों वह कीलकसंहनन है। जिसके उदयसे हड्डियाँ परस्परमें कोलित न होकर पृथक् पृथक नसोंसे लिपटी हों उसको असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन कहते हैं। __असंप्राप्तामृपाटिकासंहननका धारी जीव आठवें स्वर्ग तक जा सकता है। कीलक
और अर्द्धनाराचसंहननका धारी जीव सोलहवें स्वर्ग तक जाता है। नाराचसंहननका धारी जीव नववेयक तक जाता है। वज्रनाराचसंहननका धारी जीव अनुदिश तक जाता है। और वज्रवृषभनाराचसंहननवाला जीव पाँच अनुत्तर विमान और मोक्षको प्राप्त करता है।
वनवृषभनाराचसंहननवाला जीव सातवें नरक तक जाता है । वज्रनाराच, नाराच और अर्द्धनाराचसंहननवाले जीच छठवें नरक तक जाते हैं। कीलक संहननवाले जीव पाँचवें नरक तक जाते हैं । असंप्राप्तासृपाटिकासंहननवाला संज्ञी जीव तीसरे नरक तक जाता है।
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