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८।१४-१६]
आठवाँ अध्याय जीव भोग और उपभोग न कर सके वह भोगान्तराय और उपभोगान्तराय है । और जिसके उदयसे जीव उद्यम या उत्साह न कर सके उसको वीर्यान्तराय कहते हैं।
स्थितिबन्धका वर्णनआदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोट्यः परा स्थितिः ॥ १४ ॥
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागर है । यह स्थिति संज्ञी, पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि जीवकी है। एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवके उक्त काकी उत्कृष्ट स्थिति सागर है।
दो इन्द्रियकी स्थिति पच्चीस सागरके सात भागोंमें से तीन भाग, तीन इन्द्रियकी स्थिति पचास सागरके सात भागों में से तीन भाग और चार इन्द्रियकी उत्कृष्ट स्थिति सौ सागरके सात भागों में से तीन भाग है। असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकके उक्त कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति एक हजार सागरके सात भागोंमें से तीन भाग है । असंज्ञी पन्चेन्द्रिय अपर्याप्तक जीवके झानावरणादि चार कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति तीस अन्तः कोड़ाकोड़ी सागर है । अपर्यातक एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिद्रिय और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवोंके उक्त कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति पर्याप्तक जीवोंकी उत्कृष्ट स्थितिमें से पल्यके असंख्यातवें भाग कम है।
मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति
सप्ततिर्मोहनीयस्य ॥ १५ ॥ मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर है। यह स्थिति संज्ञी पञ्चेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीवके मोहनीय कर्मकी है।
उक्त स्थिति चारित्र मोहनीयकी है। दशनमोहनीयको उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोड़ाकोड़ी सागर है। पर्याप्तक एक इन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय जीवोंके मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति क्रमसे एक सागर, पच्चीस सागर, पचास सागर और सौ सागर है। पर्याप्तकोंकी उत्कृष्ट स्थितिमेसे पल्यके असंख्यातवें भाग कम एकेन्द्रियसे चतुरिन्द्रिय पर्यन्त अपर्याप्तक जीवोंके मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति है। असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तक जीवके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति एक हजार सागर है। और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तक जीवके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति पल्यके असंख्यातवें भाग कम एक हजार सागर है।
___ यहाँ ज्ञानावरणादि कर्मोकी स्थितिके समान सागरोंके सात भाग करके तीन भागोंका ग्रहण नहीं किया गया है किन्तु पूरे पूरे सागर प्रमाण स्थिति बतलाई गई है।
नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति
विंशतिर्नामगोत्रयोः ॥ १६ ॥ नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोड़ी सागर है । यह स्थिति संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि जीवकी है। पर्याप्तक एकेन्द्रिय जीवोंके नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरके सात भागों में से दो भाग है। पर्याप्तक दो इन्द्रिय जीवके नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागरके सात भागोंमें से दो भाग है। पर्याप्तक तीन इन्द्रिय जीवके नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति पचास सागरके सात भागोंमें से दो
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