Book Title: Tattvartha Vrutti
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 611
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [ ९३३७-४१ संस्थानविचय-तीन लोकके आकारका विचार करना संस्थान विचय है।। उक्त चार प्रकारके ध्यानको धHध्यान कहते हैं क्योंकि इनमें उत्तम क्षमा आदि दश धर्मोंका सद्भाव पाया जाता है। धर्मके अनेक अर्थ होते हैं। वस्तुके स्वभावको धर्म कहते हैं। उत्तम क्षमा आदिको धर्म कहते हैं। चारित्रको धर्म कहते हैं । जीवोंकी रक्षाको धर्म कहते है। अप्रमत्त संयत मुनिके साक्षात् धर्म्यध्यान होता है और अविरत, देशविरत और प्रमत्तसंयत जीवोंके गौण धर्म्य ध्यान होता है। ___शुक्लध्यानके स्वामी शुक्ले चाये. पूर्वविदः ॥ ३७॥ पृथक्त्ववितर्क और एकत्ववितर्क ये दो शुक्लध्यान पूर्वज्ञानधारी श्रुतकेवलीके होते हैं। 'च' शब्दसे श्रुतकेवलीके धर्म्य ध्यान भी होता है। श्रुतकेवलीके श्रेणी चढ़नेके पहिले धर्म्य ध्यान होता है। दोनों श्रेणियों में पृथक्त्ववितर्क और एकत्ववितर्क ये दो शुक्ल ध्यान होते हैं । श्रुतकेवलीके आठवें गुणस्थानसे पहिले धर्म्यध्यान होता है और आठवें नर्वे, दशवें और ग्यारहवें गुणस्थानोंमें पृथक्त्व वितर्क शुक्लध्यान होता है और बारहवें गुणस्थानमें एकत्ववितर्क शुक्लध्यान होता है। परे केवलिनः ॥ ३८॥ सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति शुक्लध्यान सयोगकेवलीके और व्युपरतक्रियानिवर्ति शुक्लध्यान अयोगकेवलीके होता है। शुक्लध्यानके भेदपृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवर्तीनि ॥ ३९ ॥ पृथक्त्ववितर्क, एकत्ववितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरतक्रियानिवर्ति ये चार शुक्लध्यानके भेद हैं। पैरोंसे गमन न करके पद्मासनसे ही गमन करनेको सुक्ष्मक्रिया कहते हैं । इस प्रकार की सूक्ष्मक्रिया जिसमें पाई जाय वह सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति शुक्लध्यान है और जिसमें सूक्ष्मक्रियाका भी विनाश हो गया हो वह व्युपरतक्रियानिवर्ति शुक्लध्यान है। शुक्लध्यानके आलम्बन'व्येकयोगकाययोगायोगानाम् ॥ ४०॥ उक्त चार शुक्लध्यान क्रमसे तीन योग, एक योग, काययोग और योगरहित जीवों के होते हैं । अर्थात् मन, वचन और काययोगवाले जीवोंके पृथक्त्ववितर्क, तीन योगों में से एकयोगवाले जीवोंके एकक्त्ववितर्क, काययोगवालोंके सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और योगरहित जीवोंके व्युपरतक्रियानिवर्ति शुक्ल ध्यान होता है। आदिके दो ध्यानोंकी विशेषता एकाश्रये सवितर्कवीचारे पूर्वे ॥ ४१ ॥ पृथक्त्ववितर्क और एकत्ववितर्क ये दो शुक्लध्यान परिपूर्ण श्रुतज्ञान धारी जीवके For Private And Personal Use Only

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