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कैसे होती हैं ?
१।४७
नक्म अध्याय प्रश्न-- बकुश और प्रतिसेवनाकुशीलके कृष्ण,नील और कापोत ये तीन लेश्याएँ
उत्तर---पुलाकके उपकरणों में आसक्ति होनेसे और प्रतिसेवनाकुशीलके उत्तरगुणों में विराधना होनेके कारण कभी आर्तध्यान हो सकता है । अतः आर्तध्यान होनेसे आदिकी तीन लेश्याओंका होना भी संभव है। पुलाकके आर्तध्यानका कोई कारण न होनेसे अन्तकी तीन लेश्याएँ ही होती हैं। कषायकुशीलके अन्तको चार लेश्याए ही होती हैं। कषायकुशीलके संज्वलन कषायका उदय होनेसे कापोत लेश्या होती है। निम्रन्थ और रनातकके केवल शुक्ल लेश्या ही होती है । अयोगकेवलीके लेश्या नहीं होती है।
उत्कृष्ट से, पुलाकका अठारह सागरकी स्थितिवाले सहस्रार स्वर्गके देवोमें उत्पाद होता है । बकुश और प्रतिसेवनाकुशीलका बाईस सागर की स्थितिवाले आरण और अच्युत स्वर्गके देवों में उत्पाद होता है। कषायकुशील और निग्रन्थोंका तेंतीस सागरकी स्थितिवाले सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें उत्पाद होता है। सबका जघन्य उपपाद दो सागरकी स्थितिवाले सौधर्म और ऐशान स्वर्गके देवोंमें होता है। स्नातकका उपपाद मोक्षमें होता है।
कणायके निमित्तसे होने वाले संयम स्थान असंख्यात है। पुलाक और कषायकुशीलके सर्वजघन्य असंख्यात संयम स्थान होते हैं। वे दोनों एक साथ असंख्यात स्थानों तक जाते हैं, बाद में पुलाक साथ छोड़ देता है, इसके बाद कषायकुशील अकेला ही असंख्यात स्थानों तक जाता है। पुनः कषायकुशील, प्रतिसेवनाकुशील और बकुश एक साथ असंख्यात स्थानों तक जाते हैं, बादमें बकुश साथ छोड़ देता है।
और असंख्यात स्थान जानेके बाद प्रतिसेवनाकुशोल भी साथ छोड़ देता है। पुनः असंख्यात स्थान जानेके बाद कषायकुशील को भी निवृत्ति हो जाती है। इसके बाद निम्रन्थ असंख्यात अकषायनिमित्तक संयम स्थानों तक जाता है और बादमें उसकी भी निवृत्ति हो जाती है । इसके अनन्तर एक संयम स्थान तक जानेके बाद स्नातकको निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है । स्नातक की संयमलब्धि अनन्तगुण होती है।
नवम अध्याय समाप्त
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