Book Title: Tattvartha Vrutti
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 632
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्त्वार्थसूत्रस्थशब्दानामकाराद्यनुक्रमः ५२१ ५।१७ ऐरावत उपकरण उपकार उपग्रह उपधात उपचार २।१ उपधि उपपाद -स्थान उपभोग उपभोगपरिभोगानर्थक्य उपभोग ( परिमाण) उपयोग उपशमक उपशान्तमोह उपस्थापन ९/४५ कन्दर्प रा२५' उपाध्याय उभयस्थ उग्ण ३।१०७३।२७,३।३७ ५।२० | ऐशान ४११९४/२९ ६।१०८।११ ९।२३ ९।२९ श्रौदयिक २॥३१:२।३४ औदारिक ९।४७ श्रौपपादिक २१४६:१५३,४।२७ २।४,८।१३ औपशमिक ७।३२ , श्रीपशमिकादि ७/२१ २।८:२।१८ ४।३२ ९।४५ कर्मभूमि ९।२२ कर्मयोग ९।२४ कर्मयोग्य ૮ર ६.११ कल्प ४१२३ ११९ कल्पात कल्पातीत ४|१७ कल्पोपपन्न ४।३,४।१७ कषाय श६,६५,६।८८।१८९ ४।३२,१०१५ कषाय ( वेदनीय ) ( पोडश) ८२ कषायोदय ६।१४ काङ्क्षा ७/२३ कापिष्ठ ४।१९ कामतीवाभिनिवेश ७/२८ १।३३ / काय ५।१६.१ -क्लेश ९।१९ -प्रवीचार -योग ९।४० ९८ ७११२ ९७ । कारित ६८ ९।३९ कारुण्य ५।६ कार्मण ३१२९ । काल . १९८५/२२:५।२९,१०।९ ५।१४ -विभाग ४।१४ ९।४० कालातिक्रम ९।२७ किम्पुरुष ४।११ ९.४१ किन्नर ४।११ १०७ किल्विषिक ४४ ९।५ । कीर्ति -व्यतिक्रम जमति जसूत्र ११२३ ८।२४ स्वभाव एकक्षेत्रावगाहस्थित एकजीव एकत्व ( अनुप्रेक्षा) एकत्ववितर्क एकद्रव्य एकपल्योपस्थिति एकप्रदेशादि एकयोग एकाग्रचिन्तानिरोध एकाश्रय एरण्डबीजवत् एषणा For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661