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८५११] आठवाँ अध्याय
४७३ एक इन्द्रिय ( ? ) से चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जीवोंके केवल असंप्राप्तामृपाटिकासंहनन होता है । असंख्यातवर्षकी आयुवालोंके ही वज्रवृषभनाराच संहनन होता है। चौथे कालमें छहों संहनन होते हैं। पाँचवें कालमें अन्तके तीन संहनन होते हैं । छठवें कालमें केवल असंप्राप्तासृपाटिका संहनन होता है। विदेह क्षेत्रमें, विद्याधरोंके स्थानों में और म्लेच्छखंडोंमें मनुष्यों और तिर्यञ्चोंके छहों संहनन होते हैं। नगेन्द्र पर्वतसे बाहर तिर्यकचोंके छहों संहनन होते हैं। कर्मभूमिमें उत्पन्न होने वाली स्त्रियोंके आदिके तीन संहनन नहीं होते हैं, केवल अन्तके तीन संहनन होते हैं।
आदिके सात गुणस्थानोंमें छहों संहनन होते हैं। उपशमश्रेणीके चार गुणस्थानों (आठवेसे ग्यारहवें तक ) में आदिके तीन संहनन होते हैं । क्षपक श्रेणीके चार गुणस्थानों (८, ९, १० और १२ ) में और सयोगकेवली गुणस्थानमें आदिका एक ही संहनन होता है।
जिसके उदय से स्पर्श ‘उत्पन्न हो वह स्पर्श नामकर्म है। स्पर्शके आठ भेद हैंकोमल, कठोर, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष ।
__ जिसके उदयसे रस उत्पन्न हो वह रस नामकर्म है। रसके पाँच भेद हैं-तिक्त, कटु, कषाय, आम्ल और मधुर ।
जिसके उदयसे गन्ध हो वह गन्ध नामकर्म है । गन्धके दो हैं-सुगन्ध और दुर्गन्ध ।
जिसके उदयसे वर्ण हो वह वर्ण नामकर्म है। वर्णके पाँच भेद हैं-शुक्ल, कृष्ण, नील, रक्त और पीत ।
. जिसके उदयसे विग्रहगतिमें पूर्व शरीरके आकारका नाश नहीं होता है उसको आनुपूर्व्य नामकर्म कहते हैं। इसके चार भेद हैं-नरकगत्यानुपूर्व्य, विर्यगत्यानुपूर्व्य, मनुष्यगत्यानुपूर्व्य और देवगत्यानुपूर्व्य । कोई मनुष्य मरकर नरकमें उत्पन्न होनेवाला है लेकिन जब तक वह नरकमें उत्पन्न नहीं हो जाता तब तक आत्माके प्रदेश पूर्व शरीरके
आकार ही रहते हैं इसका नाम नरकगत्यानुपूर्व्य है। इसी प्रकार अन्य आनुपूयों के लक्षण जानना चाहिये।
जिसके उदयसे जीवका शरीर न तो लोहेके गोलेकी तरह भारी होता है और न रुईके समान हलका ही होता है वह अगुरुलघु नाम है। जिसके उदयसे जीव स्वयं ही गले में पाश बाँधकर, वृक्ष आदि पर टंगकर मेर जाता है वह उपघात नाम है । शस्त्रघात, विपभक्षण, अग्निपात, जलनिमज्जन आदिके द्वारा आत्मघात करना भी उपधात है। जिसके उदयसे दूसरोंके शस्त्र आदिसे जीवका घात होता है वह परघात नाम है। जिसके उदयसे शरीर में आताप हो वह आतप नाम है। जिसके उदयसे शरीर में उद्योत हो वह उद्योत नाम है जेसे चन्द्रमा,जुगनू आदिका शरीर । जिसके उदयसे उच्छ्वास हो वह उच्छ्वास नाम है। जिसके उदयसे आकाशमें गमन हो वह विहायोगति नाम है। इसके दो भेद हैं-प्रशस्त विहायोगति और अप्रशस्तविहायोगति । गज, वृषभ, हंस आदिके गमन की तरह सुन्दर गतिको प्रशस्त विहायोगति और ऊँट, गधा, सर्प आदिके समान कुटिल गतिको अप्रशस्त विहायोगति कहते हैं। जिसके उदयसे एक शरीरका स्वामी एक ही जीव हो वह प्रत्येक शरीर नाम है। जिसके उदयसे एक शरीरके स्वामी अनेक जीव हों वह साधारण शरीर नाम है।
वनस्पति कायके दो भेद हैं-साधारण और प्रत्येक । जिन जीवोंका आहार और श्वासोच्छ्वास एक साथ हों उनको साधारण कहते हैं। प्रत्येक वनस्पतिके भी दो भेद हैं
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