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तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[ ९॥२-४ संवरके कारणस गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रैः ॥ २ ॥ गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय और चारित्र इसके द्वारा संवर होता है।
संसारके कारणस्वरूप मन, वचन और कायके व्यापारोंसे आत्माकी रक्षा करनेको अर्थात् मन,वचन और कायके निग्रह करनेको गुप्ति कहते हैं। जीवहिंसारहित यत्नाचारपूर्वक प्रवृत्ति करनेको समिति कहते हैं। जो आत्माको संसारके दुःखोंसे छुटाकर उत्तम स्थानमें पहुंचा दे वह धर्म है । शरीर आदिके स्वरूपका विचार अनुप्रेक्षा है। क्षुधा,तृषा आदिकी वेदना उत्पन्न होनेपर कर्मोंकी निर्जराके लिये उसे शान्तिपूर्वक सहन कर लेना परोपहजय है। कर्मों के प्रास्रवमें कारणभूत बाह्य और आभ्यन्तर क्रियाओंके त्याग करनेको चारित्र कहते हैं।
सूत्रमें आया हुआ 'स' शब्द यह बतलाता है कि गुप्ति आदिके द्वारा ही संवर होता है। और जलमें डूबना, शिरमुण्डन, शिखाधारण, मस्तकछेदन, कुदेव आदिकी पूजा आदिके द्वारा संवर नहीं हो सकता है, क्योंकि जो कर्म राग, द्वेष आदिसे उपाजित होते हैं उनकी निवृत्ति विपरीत कारणोंसे हो सकती है।
संवर और निर्जराका कारण
तपसा निर्जरा च ॥३॥ तपके द्वारा निर्जरा और संवर दोनों होते हैं। 'च' शब्द संवरको सूचित करता है।
यद्यपि दश प्रकारके धर्मों में तपका ग्रहण किया है और उसीसे तप संवर और निर्जराकारण सिद्ध हो जाता, लेकिन यहाँ पृथक् रूपसे तपका ग्रहण इस बातको बतलाता है कि तप नवीन कर्मों के संवरपूर्वक कर्मक्षयका कारण होता है तथा तप संवरका प्रधान कारण है।
प्रश्न-आगममें तपको अभ्युदय देनेवाला बतलाता है। वह संवर और निर्जराका साधक कैसे हो सकता है ? कहा भी है-"दानसे भोग प्राप्त होता है, तपसे परम इन्द्रत्व तथा ज्ञानसे जन्म जरा मरणसे रहित मोक्षपद प्राप्त होता है।
उत्तर-एक ही तप इन्द्रादि पदको भी देता है और संवर और निर्जराका कारण भी होता है इसमें कोई विरोध नहीं है। एक पदार्थ भी अनेक कार्य करता है जैसे एक ही छत्र छायाको करता है तथा धूप और पानीसे बचाता है। इसी प्रकार तप भी अभ्युदय और कर्म क्षयका कारण होता है।
गुप्तिका स्वरूप--
सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः ॥४॥ विषयाभिलाषाको छोड़कर और ख्याति, पूजा, लाभ आदिकी आकांक्षासे रहित होकर मन, वचन और कायके व्यापारके निग्रह या निरोधको गुप्ति कहते हैं। योगोंके निग्रह होनेपर संक्लेश परिणाम नहीं होते हैं और ऐसा होनेसे कर्मोंका आस्रव भी नहीं होता है । अतः गुप्ति संवरका कारण होती है। गुप्तिके तीन भेद हैं-कायगुप्ति, वाग्गुप्ति और मनोगुप्ति ।
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