Book Title: Tattvartha Vrutti
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 580
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८१८-९] आठवाँ अध्याय ४६५ वरण है । मद, खेद, परिश्रम आदिको दूर करनेके लिये सोना निद्रा है। निद्राका बार बार लगातार आना निद्रानिद्रा है । निद्रावाला पुरुष जल्दी जग जाता है। निद्रानिद्रावाला पुरुष बहुत मुश्किलसे जगता है। जो शरीरको चलायमान करे वह प्रचला है । प्रचला शोक, श्रम, खेद आदिसे उत्पन्न होती है और नेत्रविकार, शरीर विकार आदिके द्वारा सूचित होती है। प्रचलावाला पुरुष बैठे बैठे भी सोने लगता है । प्रचलाका पुनः पुनः होना प्रचलाप्रचला है। जिसके उदयसे सोनेकी अवस्थामें विशेष बलकी उत्पत्ति हो जावे वह स्त्यानगृद्धि है । त्यानगृद्धि वाला पुरुष दिनमें करने योग्य अनेक रौद्र कार्योंको रात्रिमें कर डालता है और जागने पर उसको यह भी मालूम नहीं होता कि उसने रात्रिमें क्या किया। गोम्मटसार कर्मकाण्ड में निद्रा आदि के लक्षण निम्न प्रकार बतलाए हैं स्त्यानगृद्धिके उदयसे सोता हुआ जीव उठ बैठता है, काम करने लगता है और बोलने भी लगता है। निद्रानिद्राके उदयसे जीव आँखोंको खोलनेमें भी असमर्थ हो जाता है। प्रचलाप्रचलाके उदयसे सोते हुये जीवकी लार बहने लगती है और हाथ पैर आदि चलने लगते हैं। प्रचलाके उदयसे जीव कुछ कुछ सो जाता है, सोता हुआ भी कुछ जागता रहता और बार बार मन्द शयन करता है। और निद्राके उदयसे जीव चलते चलते रुक जाता है, बैठ जाता है। गिर पड़ता है और सो जाता है। वेदनीयके भेद सदसद्वद्ये ॥ ८॥ साता वेदनीय और असाता वेदनीय ये वेदनीयके दो भेद हैं। जिसके उदयसे देव,मनुष्य और तिर्यमातिमें शारीरिक और मानसिक सुखोंका अनुभव हो उसको साता वेदनीय कहते हैं। और जिसके उदयसे नरकादि गतियों में शारीरिक, मानसिक आदि नाना प्रकारके दुःखोंका अनुभव हो उसको असातावेदनीय कहते है। ___मोहनीयके भेददर्शनचारित्रमोहनीयाकपायकषायवेदनीयाख्यात्रिद्विनवषोडशमेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयान्यकषायकषायौ हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुंनपुंसकवेदा अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वलनविकल्पाश्चैकशः क्राधमानमायालोभाः ॥ ९॥ मोहनीय कर्मके मुख्य दो भेद हैं-दशनमोहनीय और चारित्रमोहनीय । दर्शन मोहनीयके तीन भेद हैं- १ सम्यक्त्व, २ मिथ्यात्व और ३ सम्यग्मिथ्यात्व । चारित्र मोहनीयके दो भेद हैं-कषायवेदनीय और अकषायवेदनीय । कषाय वेदनोयके सोलह भेद हैं-अनन्तानुबन्धी क्रोध,मान,माया और लोभ । अप्रत्याख्यान क्रोध,मान, माया और लोभ । प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया और लोभ । संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ । अकषाय वेदनीयके नव भेद हैं-हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसक वेद । यद्यपि बन्धकी अपेक्षा दर्शनमोहनीय एक भेदरूप ही है लेकिन सत्ताकी अपेक्षा उसके तीन भेद हो जाते हैं। शुभपरिणामोंके द्वारा मिथ्यात्वकी फलदानशक्ति रोक दी जाने For Private And Personal Use Only

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