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४६८ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[८५-७ भेद हैं। ज्ञानावरण आदिके भेदसे कर्मके आठ भेद हैं। इस प्रकार कर्मके संख्यात, असंख्यात और अनन्त भी भेद होते हैं।
प्रकृतिबन्धके उत्तर भेदपञ्चनवद्वयष्टाविंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशद्विपञ्चभेदा यथाक्रमम् ॥ ५॥
उक्त ज्ञानावरणादि आठ काँके क्रमसे पाँच, नौ, दो, अट्ठाईस, चार, व्यालीस, दो और पाँच भेद हैं। ___ यधपि इस सूत्रमें यह नहीं कहा गया है कि प्रकृतिबन्धके ये उत्तर भेद हैं, लेकिन पूर्व में 'आद्य' शब्दके होनेसे यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि ये प्रकृतिबन्धके ही उत्तर भेद हैं।
ज्ञानावरणके भेदमतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानाम् ॥ ६ ॥ मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण ये ज्ञानावरणके पाँच भेद हैं।
प्रश्न-अभव्यजीवोंमें मनःपर्ययज्ञानशक्ति और केवलज्ञानशक्ति है या नहीं ? यदि है तो वे जीव अभव्य नहीं कहलांयगे और यदि शक्ति नहीं है तो उन जीवोंमें मन:पर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरणका सद्भाव मानना व्यर्थ ही है।
उत्तर-नयकी दृष्टिसे उक्त मतमें कोई दोष नहीं आता। द्रव्यार्थिक नयकी दृष्टिसे अभव्यजीवों में मनःपर्ययज्ञानशक्ति और केवलज्ञानशक्ति है और पर्यायार्थिकनयकी दृष्टिसे उक्त दानों शक्तियाँ नहीं है।
प्रश्न-यदि अभव्यजीवों में भी मनःपर्ययज्ञानशक्ति और केवलज्ञानशक्ति पाई जाती है तो भव्य और अभव्यका विकल्प ही नहीं रहेगा।
उत्तर-शक्तिके सद्भाव और असद्भावकी अपेक्षा भव्य और अभव्य भेद नहीं होते हैं किन्तु शक्तिकी व्यक्ति (प्रकट होना ) की अपेक्षा उक्त भेद होते हैं।
सम्यग्दर्शन आदिके द्वारा जिस जीवकी शक्तिकी व्यक्ति हो सकती है वह भव्य है और जिसकी शक्तिकी व्यक्ति नहीं हो सकती वह अभव्य है। जैसे एक कनकपाषाण होता है जिससे स्वर्ण निकलता है और एक अन्धपाषाण होता है जिससे सोना नहीं निकलता ( यद्यपि उसमें शक्ति रहती है )। यही बात भव्य और अभव्यके विषयमें जाननी चाहिये।
दर्शनावरणके भेदचक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रानिद्रानिद्राप्रचलाप्रचलाप्रचलास्त्यानगृद्धयश्च ॥ ७॥
चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि ये दर्शनावरणके नौ भेद हैं।
जो चक्षु द्वारा होने वाले सामान्य अवलोकनको न होने दे वह चक्षुःदर्शनावरण है। जो चक्ष को छोड़कर अन्य इद्रियोंसे होनेवाले सामान्य अवलोकनको न होने दे वह अचक्षुःदर्शनावरण है । जो अवधिज्ञानसे पहिले होनेवाले सामान्य अवलोकनको न होने दे वह अवधिदर्शनावरण और जो केवलज्ञानके साथ होनेवाले सामान्य दर्शनको रोके वह केवलदर्शना
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