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४४२ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
{ ६।१५-१९ पराङ्गनाका अपमान, स्त्री और पुरुषों में अनङ्गक्रीड़ा करना, व्रत और शीलधारी पुरुषोंको कष्ट देना और तीव्रराग आदि नपुंसकवेदके आस्रव है ।
नरक आयुके आस्रव
बहारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः ॥ १५ ॥ बहुत आरंभ और परिग्रह नरक आयुके आस्रव हैं। ऐसे व्यापारको जिसमें प्राणियोंको पीड़ा या वध हो आरंभ कहते है । जो वस्तु अपनी (आत्माकी ) नहीं है उसमें ममेदं ( यह मेरी है ) बुद्धि या मूर्छाका होना परिग्रह है।
मिथ्यादर्शन, तीव्रराग, अनृतवचन, परद्रव्यहरण, निःशीलता, तीव्रवर, परोपकार न करना, यतियोंमें विरोध कराना, शास्त्रविरोध, कृष्णलेश्या, विषयोंमें तृष्णाकी वृद्धि, रौद्रध्यान, हिंसादि क्रूर कर्मोमें प्रवृत्ति, बाल, वृद्ध और स्त्रीकी हिंसा आदि भी नरक आयुके आस्रव हैं।
तिर्यञ्च आयुके आस्रव
माया तैर्यग्योनस्य ॥१६॥ माया अर्थात् छल-कपट करना तिर्यश्च श्रायुका आस्रव हैं।
मिथ्यात्वसहित धर्मोपदेश, अधिक आरम्भ और परिग्रह, निःशीलता, ठगनेकी इच्छा, नीललेश्या, कापोतलेश्या, मरणकाल में आर्तध्यान, क्रूरकर्म, अप्रत्याख्यान क्रोध, भेद करना, अनर्थका उद्भावन सुवर्ण आदिको खोटा खरा आदि रूपसे अन्यथा कथन करना, कृत्रिमचन्दनादि करना, जाति कुल और शीलमें दूषण लगाना, सद्गुणोंका लोप और दोषोंकी उत्पत्ति आदि भी तिर्यञ्च आयुके आस्रव हैं।
मनुष्य आयु के आस्रव
अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य ॥ १७ ॥ थोड़ा आरंभ और थोड़ा परिग्रह मनुष्य आयुके आस्रव हैं।
विनीत प्रकृति, भद्र स्वभाव, कपटरहित व्यवहार, अल्पकषाय, मरणकालमें असंक्लेश, मिथ्यादर्शनसहित व्यक्तिमें नम्रता,सुखबोध्यता, प्रत्याख्यान क्रोध, हिंसासे विरति, दोषरहितत्व, क्रूर कर्मोंसे रहितता, अभ्यागतोंका स्वभावसे ही स्वागत करना, मधुरवचनता, उदासीनता, अनसूया, अल्पसंक्लेश, गुरु आदिकी पूजा, कापोत और पीतलेश्या आदि मनुष्य आयुके आस्रव हैं।
स्वभावमार्दवञ्च ॥१८॥ स्वाभाविक मृदुता भी मनुष्य आयुका आस्रव है । मानके अभावको मार्दव कहते हैं। गुरूपदेशके विना स्वभावसे ही सरल परिणामी होना स्वभावमार्दव है। . ___ इस सूत्रसे पृथक् इसलिये किया है कि स्वभावमार्दव देवायुका भी कारण है।
सब आयुओंका आस्रव
निःशीलवतित्वञ्च सर्वेषाम् ॥ १९ ॥ तीन गुणव्रत और शिक्षाव्रत इन सात शीलों और अहिंसा आदि पाँच व्रतोंका अभाव और सूत्रमें 'च' शब्दसे अल्प आरंभ और अल्प परिग्रह ये चारों आयुओंके आस्रव हैं।
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