________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४५९
७।२५-२७ ]
सातवाँ अध्याय बतलानेके लिये किया गया हैं। ब्रतोंकी रक्षा करनेको शील कहते हैं। दिग्नत आदि सात शीलोंके द्वारा पाँच अणुव्रतोंकी रक्षा होती है यही शीलोंकी विशेषता है। अतः शीलके पृथक् ग्रहण करने में कोई दोष नहीं है।
अहिंसाणुव्रतके अतिचारबन्धवधच्छेदातिभारारोपणानपाननिरोधाः ॥ २५ ॥ बन्ध, वध, छेद, अतिभारारोपण और अन्नपाननिरोध ये अहिंसाणुव्रतके पाँच अतिचार हैं।
इच्छित स्थानमें गमन रोकनेके लिये रस्सी आदिसे बाँध देना बन्ध है। लकड़ी, बैत, दण्ड आदिसे मारना वध है। यहाँ वधका अर्थ प्राणोंका विनाश नहीं है क्योंकि इसका निषेध हिंसारूपसे पहिले ही कर चुके हैं। नाक, कान आदि अवयवोंको छेद देना छेद है । शक्तिसे अधिक भार लादना अतिभारारोपण है । मनुष्य, गाय, भैंस, बैल, घोड़ा आदि प्राणियोंको समय पर भोजन और पानी नहीं देना अन्नपाननिरोध है।
___ सत्याणुव्रतके अतिचारमिथ्योपदेशरहोऽभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ॥ २६॥
मिथ्योपदेश, रहोऽभ्याख्यान, कूटलेखक्रिया, न्यासापहार और साकारमन्त्रभेद ये सत्याणुव्रतके पाँच अतिचार है।
अभ्युदय और निःश्रेयसको न देनेवाली क्रियाओंमें भोले मनुष्योंकी प्रवृत्ति कराना और धनादिके निमित्तसे दूसरोंको ठगना मिथ्योपदेश है। इन्द्रपद, तीर्थंकरका गर्भ और जन्म कल्याणक, साम्राज्य, चक्रवर्तिपद, तपकल्याणक, महामण्डलेश्वर आदि राज्यपद, और सर्वार्थसिद्धिपर्यन्त अहमिन्द्रपद, इन सब संसारके विशेष अथवा साधारण सुखोंका नाम अभ्युदय है । और केवल ज्ञानकल्याणक,निर्वाण कल्याणक, अनन्तचतुष्टय और परमनिर्वाणपद ये सब निःश्रेयस हैं । स्त्री और पुरुषके द्वारा एकान्तमें किये गये किसी कार्यविशेष को अथवा वचनोंको गुप्तरूपसे जानकर दूसरोंके सामने प्रकट कर देना रहोऽभ्याख्यान है। किसी पुरुषके द्वारा नहीं किये गये और नहीं कहे गये कार्यको द्वेषके कारण उसने ऐसा किया है
और ऐसा कहा है इस प्रकार दूसरोंको ठगने और पीड़ा देनेके लिये असत्य बातको लिखना कूटलेखक्रिया है। किसी पुरुषने दूसरे के यहाँ सुवर्ण आदि द्रव्यको धरोहर रख दिया, द्रव्य लेनेके समय संख्या भूल जानेके कारण कम द्रव्य माँगने पर जानते हुए भी कहना कि हाँ इतना ही तुम्हारा द्रव्य है, इस प्रकार धरोहरका अपहरण करना न्यासापहार है। अङ्गविकार, भ्रूविक्षेप आदिके द्वारा दुसरोंके अभिप्रायको जानकर ईर्षा आदिके कारण दूसरों के सामने प्रकट कर देना साकारमन्त्रभेद है।
अचौर्याणुव्रतके अतिचारस्तेनप्रयोगतदाहतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मान
प्रतिरूपकव्यवहाराः ।। २७ ।। स्तेनप्रयोग, तदाहृतादान, विरुद्धराज्यातिक्रम, हीनाधिकमानोन्मान और प्रतिरूपकव्यवहार ये अचौर्याणुव्रतके अतिचार है।
For Private And Personal Use Only