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तत्त्वार्थवृत्ति-हिन्दी-सार
[ ५/३९-४० काल द्रव्यका वर्णन
कालश्च ।। ३६ ॥ ___ काल भी द्रव्य है क्योंकि उसमें द्रव्यका लक्षण पाया जाता है। द्रव्यका लक्षण 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं और 'गुणपर्ययवद् द्रव्यम्' बतलाया है। कालमें दोनों प्रकारका लक्षण पाया जाता है। स्वरूपकी अपेक्षा नित्य रहने के कारण कलमें स्वप्रत्यय ध्रौव्य है। उत्पाद और व्यय स्वप्रत्यय और परप्रत्यय दोनों प्रकारसे होते हैं। गुरुलघु गुणोंकी हानि
और वृद्धिको अपेक्षा काल में स्वप्रत्यय उत्पाद और व्यय होता रहता है। काल द्रव्योंके परिवतन में कारण होता है अतः परप्रत्यय उत्पाद और व्यय भी कालमें होते हैं।
कालमें साधारण और असाधारण दोनों प्रकारके गुण रहते हैं। अचेतनत्व, अमूर्तत्व, सूक्ष्मत्व, अगुरुलघुत्त्र आदि कालके साधारण गुण हैं। द्रव्योंके परिवर्तनमें हेतु होना कालका असाधारण गुण है। इसीप्रकार कालमें पर्याएँ भी उत्पन्न और विनष्ट होती रहती हैं। अतः जीवादिकी तरह काल भी द्रव्य है।
प्रश्न-काल द्रव्यको पृथक् क्यों कहा । पहिले "अजीवकाया धर्माधर्माकाशकालपदगलाः"ऐसा सूत्र बनाना चाहिये था। ऐसा करनेसे काल द्रव्यका पृथक् वर्णन न करना पड़ता।
उत्तर-यदि "अजीवकाया" इत्यादि सूत्रमें काल द्रव्यको भी सम्मिलित कर देते तो धर्म आदि द्रव्योंकी तरह काल भी काय हो जाता । लेकिन कालद्रव्य मुख्य और उपचार . दोनों रूपसे काय नहीं है।
पहिले "निष्क्रियाणि च" इस सूत्र में धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्यको निष्क्रिय बतलाया है । इनके अतिरिक्त द्रव्य सक्रिय हैं। अतः पूर्व सूत्रमें कालका वर्णन होनेसे काल भी सक्रिय द्रव्य हो जाता और "आ आकाशादेकद्रव्यम्" इसके अनुसार काल भी एक द्रव्य हो जायगा । लेकिन काल न तो सक्रिय है और न एक द्रव्य । इन कारणों से काल द्रव्यका वर्णन पृथक किया गया है।
कालद्रव्य अनेक है इसका तात्पर्य यह है कि लोकाकाशके प्रत्येक प्रदेश पर एक एक कालाणु रत्नराशिके समान पृथक् पृथक् स्थित है । लोकाकाशके प्रदेश असंख्यात होनेसे काल द्रव्य भी असंख्यात है। कालाणु अमूर्त और निष्क्रिय हैं तथा सम्पूर्ण लोकाकाशमें व्याप्त हैं।
व्यवहारकाल का प्रमाण
सोऽनन्तसमयः ॥४०॥ व्यवहारकालका प्रमाण अनन्त समय है। यद्यपि वर्तमान कालका प्रमाण एक समय ही है किन्तु भूत और भविष्यत् कालकी अपेक्षासे कालको अनन्तसमयवाला कहा गया है।
अथवा यह सूत्र व्यवहार कालके प्रमाणको न बतलाकर मुख्यकालके प्रमाणको ही बतलाता है । एक भी कालाणु अनन्त पर्यायोंकी वर्तनामें हेतु होने के कारण उपचारसे अनन्त समयघाला कहा जाता है। समय कालके उस छोटेसे छोटे अंशको कहते हैं जिसका बुद्धिके द्वारा विभाग न हो सके। मन्दगतिसे चलनेवाले पुद्गल परमाणुको आकाशके एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेश तक चलनेमें जितना काल लगे उतने कालको समय कहते हैं।
यहाँ समय शब्दसे आवली, उच्छ्वास आदिका भी ग्रहण करना चाहिये । असंख्यात समयोंकी एक आवली होती है। संख्यात आवलियोंका एक उच्छ्वास होता है। सात
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