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३।३८]
तृतीय अध्याय किया जाता है इसलिये इनको कर्मभूमि कहते हैं । यद्यपि सम्पूर्ण जगत्में ही कर्म किया जाता है किन्तु उत्कृष्ट शुभ और अशुभ कर्मका आश्रय होनेसे इनको ही कर्मभूमि कहा
स्वयम्प्रभ पर्वतसे आगे लोकके अन्त तक जो तिर्यश्च हैं उनके पाँच गुणस्थान हो सकते हैं। उनकी आयु एक पूर्वकोटिकी है। वहाँ के मत्स्य सातवें नरकमें ले जाने वाले पापका बन्ध करते हैं। कोई कोई थलचर जीव स्वर्ग आदिके हेतुभूत पुण्यका भी उपार्जन करते हैं । इसलिये आधा स्वयंभूरमण द्वीप, पूरा स्वयंभूरमण समुद्र और समुद्रके बाहर चारों कोने कर्मभूमि कहलाते है।
मनुष्योंकी आयुका वर्णननृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्त ।। ३८ ।। मनुष्योंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य और जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त है। पल्यके तीन भेद हैं-व्यवहार पल्य, उद्धार पल्य और अद्धा पल्य ।
व्यवहार पल्यसे संख्याका, उद्धार पल्यसे द्वीप समुद्रोंका और अद्धा पल्यसे कर्मों की स्थितिका वर्णन किया जाता है। व्यवहार पल्यका स्वरूप प्रमाणाङ्गुलसे परिमित एक प्रमाण योजन होता है । अवसर्पिणी कालके प्रथम चक्रवर्तीके अङ्गुलको प्रमाणाङ्गुल कहते हैं । चौबीस प्रमाणाङ्गुलका एक हाथ होता है। चार हाथका एक दण्ड होता है। दो हजार दण्डोंकी एक प्रमाणगव्यूति होती है। चार गव्यूतिका एक प्रमाणयोजन होता है । अर्थात् पाँच सौ मानव योजनोंका एक प्रमाणयोजन होता है । मानव योजनका स्वरूप--
आठ परमाणुओंका एक सरेणु होता है । आठ त्रसरेणुओंका एक रथरेणु होता है। आठ रथरेणुओंका एक चिकुराग्र होता है। आठ चिकुरामोंकी एक लिक्षा होती है । आठ लिक्षाओंका एक सिद्धार्थ होता है । आठ सिद्धार्थोंका एक यव होता है। आठ यवोंका एक अङ्गुल होता है। छह अङ्गुलोंका एक पाद होता है । दो पादोंकी एक वितस्ति होती है । दो वितस्तियोंकी एक रति होती है। चार रतियोंका एक दण्ड होता है । दो हजार दण्डोंकी एक गव्यूति होती है । चार गब्यूतिका एक मानवयोजन होता है । और पांच सौ मानवयोजनोंका एक प्रमाणयोजन होता है।
एक प्रमाणयोजन लम्बा, चौड़ा और गहरा एक गोल गड्डा हो। सात दिन तकके मेषके बच्चोंके बालोंको केचीसे कतर कर इस प्रकार टुकड़े किये जाय कि फिर दूसरा टुकड़ा न हो सके । उन सूक्ष्म बालोंके टुकड़ोंसे वह गड्डा कूट कूटकर भर दिया जाय इस गड्डू को व्यवहारपल्य कहते हैं । पुनः सौ वर्ष के बाद उस गड्र मेंसे एक एक टुकड़ा निकाला जावे । इस क्रमसे सम्पूर्ण रोमखण्डोंके निकलने में जितना समय लगे उतने समयको व्यवहारपल्योपम कहते हैं।
पुनः असंख्यात करोड़ वर्षों के जितने समय हों उतने समयोंसे प्रत्येक रोमखण्डोंका गुणा करे और इस प्रकार के रोमखण्डों से फिर उस गड्ढेको भर दिया जाय । इस गडका नाम उद्धारपल्य है। पुनः एक एक समयके बाद एक एक रोमखण्डको निकालना चाहिए। इस क्रमसे सम्पूर्ण रोमखण्डोंके निकलने में जितना समय लगे उतने समयको उद्धार-- पल्योपम कहते हैं । दश कोड़ाकोड़ी उद्धारपल्योंका एक उद्धारसागर होता है ।
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