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४।२३-२५] चतुर्थ अध्याय
४११ कल्पकी सीमा
प्राग्वेयकेभ्यः कल्पाः ।। २३ ॥ अवेयकोंसे पहिलेके विमानोंकी कल्प संज्ञा है । अर्थात् सोलह स्वाँको कल्प कहते है । नव प्रैवेयक, नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमान कल्पातीत कहलाते हैं ।
लौकान्तिक देवोंका निवास
ब्रह्मलोकालया लौकान्तिकाः ॥ २४ ॥ लौकान्तिक देव ब्रह्मलोक नामक पांचवें स्वर्गमें रहते हैं।
प्रश्न-यदि ब्रह्मलोकमें रहनेके कारण इनको लौकान्तिक कहते हैं तो ब्रह्मलोकनिवासी सब देवोंको लौकान्तिक कहना चाहिये।
उत्तर-लौकान्तिक यह यथार्थ नाम है और इसका प्रयोग ब्रह्मलोक निवासी सब देवोंके लिये नहीं हो सकता । लोकका अर्थ है ब्रह्मलोक । ब्रह्मलोकके अन्तको लोकान्त और लोकान्तमें रहनेवाले देवोंका नाम लौकान्तिक है । अथवा संसारको लोक कहते हैं। और जिनके संसारका अन्त समीप है उन देवोंको लौकान्तिक कहते हैं । लौकान्तिक देव स्वर्गसे च्युत होकर मनुष्य भव धारणकर मुक्त हो जाते हैं। अतः लोकान्तिक यह नाम सार्थक है।
लौकान्तिक देवोंके भेदसारस्वतादित्यवह्नयरुणगर्दतोयतुषिताव्याबाधारिष्टाश्च ।। २५ ।।
सारस्वत, आदित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और अरिष्ट ये आठ प्रकारके लौकान्तिक देव होते हैं। ___जो चौदह पूर्वके ज्ञाता हों वे सारस्वत कहलाते हैं। देवमाता अदितिकी सन्तानको आदित्य कहते हैं। जो वह्निके समान देदीप्यमान हों वे वह्नि हैं। उदीयमान सूर्य के समान जिनकी कान्ति हो वे अरुण कहलाते हैं।
शब्दको गर्द और जलको तोय कहते हैं। जिनके मुखसे शब्द जलके प्रवाहकी तरह निकलें वे गर्दतोय हैं। जो संतुष्ट और विषय सुखसे परान्मुख रहते हैं वे तुषित हैं । जिनके कामादिजनित बाधा नहीं है वे अव्याबाध हैं। जो अकल्याण करने वाला कार्य नहीं करते हैं उनको अरिष्ट कहते हैं। सारस्वत आदि देवोंके विमान क्रमशः ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैर्ऋत्य, पश्चिम, वायव्य और उत्तर दिशामें हैं। इनके अन्तरालमें भी दो दो देवोंके विमान हैं । सारस्वत और आदित्य के अन्तराल में अग्न्याम और सूर्याभ, आदित्य और वह्निके अन्तरालमें चन्द्राभ और सत्याभ,वह्नि और अरुणके अन्तरालमें श्रेयस्कर और क्षेमंकर,अरुण और गर्दतोयके अन्तरालमें वृषभेष्ट और कामचर,गर्दतोय और तुषितके मध्यमें निर्माणरज और दिगन्तरक्षित, तुषित और अव्याबाधके मध्यमें आत्मरक्षित और सर्वरक्षित, अव्याबाध और अरिष्टके मध्यमें मरुत और वसु और अरिष्ट और सारस्वतके मध्यमें अपूर्व और विश्व रहते हैं।
___ सब लौकान्तिक स्वाधीन, विषय सुखसे परान्मुख, चौदह पूर्वके ज्ञाता और देवोंसे पूज्य होते हैं । ये देव तीर्थंकरोंके तपकल्याणकमें ही आते हैं।
लौकान्तिक देवोंकी संख्या चार लाख सात हजार आठ सौ बीस है।
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