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४२० तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[५:१३-१४ उत्तर-आकाशसे अधिक परिमाण वाला अर्थात् बड़ा दूसरा कोई द्रव्य नहीं है जो आकाशका आधार हो सके अतः आकाश किसीका आधेय नहीं हो सकता । आकाश भी व्यवहार नयकी अपेक्षा धर्मादि द्रव्योंका आधार माना गया है । निश्चय नयसे तो सब द्रव्य अपने अपने आधार हैं । आकाश और अन्य द्रव्योंमें आधार-आधेय सम्बन्धका तात्पर्य यही है कि आकाशसे बाहर अन्य द्रव्य नहीं है। एवम्भूत नयकी अपेक्षा तो सभी द्रव्य स्वप्रतिष्ठ ही हैं। एवम्भूत अर्थात् निश्चयनय । परमात्मप्रकाश (१५) में सिद्धोंको स्वात्मनिवासी ही बतलाया है।
प्रश्न-आधार और प्राधेय पूर्वापर कालभावी होते हैं। जैसे घड़ा पहिले रखा हुआ है और उसमें बेर आदि पीछे रख दिए जाते हैं । आकाश और धर्मादि द्रव्य समकालभावी हैं इसलिये इनमें व्यवहारनयसे भी आधार-आधेयसम्बन्ध नहीं बन सकता ?
उत्तर-कहीं कहीं समकालभावी पदार्थों में भी आधार-आधेय सम्बन्ध पाया जाता है जैसे घट और घटके रूपादिकमें। इसी प्रकार समकालभावी आकाश और धर्मादि द्रव्यों में उक्त सम्बन्ध है।
· लोक और अलोकका विभाग धर्म और अधर्म द्रव्यके सद्भावसे होता है । यदि धर्म और अधर्म द्रव्य न होते तो जीव और पुद्गलकी जहाँ कि धर्म और अधर्म द्रव्य है वह लोक और उसके बाहर अलोक गति और स्थितिके अभाव होजानेसे लोकालोकका विभाग भी न होता।
धर्माधर्मयोः कृत्स्ने ॥ १३ ॥ धर्म और अधर्म द्रव्य समस्त लोकाकाशमें तिलमें तेलकी तरह व्याप्त हैं। इसमें अवगाहन शक्ति होनेसे परस्पर में व्याघात नहीं होता है।
प्रश्न-अलोकाकाशमें अधर्म द्रव्य न होने से आकाशकी स्थिति और काल द्रव्य न होनेसे आकाशमें परिणमन कैसे होता है ? .
उत्तर-जैसे जलके समीप स्थित उष्ण लोहेका गोला एक ओरसे जलको खींचता है लेकिन जल पूरे लोह पिण्ड में व्याप्त हो जाता है उसी प्रकार लोकके अन्तभागके निकटका अलोकाकाश अधर्म और काल द्रव्यका स्पर्श करता है और उस स्पर्शके कारण समस्त अलोकाकाशकी स्थिति और उसमें परिवर्तन होता है ।
एकप्रदेशादिषु भाज्यः पुद्गलानाम् ॥ १४ ॥ पुद्गल द्रव्यका अवगाह लोकाकाशके एक प्रदेशको आदि लेकर असंख्यात प्रदेशोंमें यथायोग्य होता है । आकाशके एक प्रदेशमें एक परमाणुसे लेकर असंख्यात और अनन्त परमाणुओंके स्कन्धका अवगाह हो सकता है । इसी प्रकार आकाशके दो, तीन आदि प्रदेशों में भी पुद्गल द्रव्यका अवगाह होता है।
प्रश्न-धर्म और अधर्म द्रव्य अमूर्त हैं इसलिये इनके अवगाहमें कोई विरोध नहीं है लेकिन अनन्त प्रदेशवाले मूर्त पुद्गलस्कन्धका असंख्यात प्रदेशी लोकाकाशमें अवगाह कैसे हो सकता है ?
उत्तर-सूक्ष्म परिणमन और अवगाहन शक्ति होनेसे आकाशके एक प्रदेशमें भी अनन्त परमाणुवाला पुद्गलस्कन्ध रह सकता है। जैसे एक कोठेमें अनेक दीपकोंका प्रकाश
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