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४२४ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[५।२०-२२ ___ मन और प्राणापानका भी मूर्त द्रव्यसे प्रतिघात आदि देखा जाता है इसलिये ये भी मूर्त हैं। बिजलीके गिरनेसे मनका प्रतिघात और मदिरा आदिसे अभिभव देखा जाता है। हाथ आदिसे मुखको बन्द कर देने पर प्राणापानका प्रतिघात और गलेमें कफ अटक जाने पर श्वासोच्छ्वासका अभिभव भी देखा जाता है।
प्राणापान क्रियाके द्वारा जीवका अस्तित्व सिद्ध होता है। शरीरमें जो श्वासोच्छवास क्रिया होती है उसका कोई कर्ता अवश्य होना चाहिये क्योंकि कर्ता के बिना क्रिया नहीं हो सकती और जो श्वासोच्छवास क्रियाका कर्ता है वही जीव है । उक्त शरीर आदि पुद्गलके उपकार जीवके प्रति हैं।
सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च ॥ २० ॥ सुख, दुःख, जीवित और मरण ये भी जीवके प्रति पुद्गलके उपकार हैं। साता वेदनीयके उदयसे सुख और असाता वेदनीयके उदयसे दुःख होता है । आयु कर्मके उदयसे जीवन और आयु कर्मके विनाशसे मरण होता है । सुख आदि मूर्त कारणके होने पर होते हैं इसलिये ये पौद्गलिक हैं।
सूत्रगत उपग्रह शब्द इस बातको सूचित करता है कि पुद्गलका पुद्गलके प्रति भी उपकार होता है। जैसे काँसेका वर्तन भस्मसे साफ हो जाता है, मैला जल फिटकरी आदिसे स्वच्छ हो जाता है और गरम लोहा जलसे ठंडा हो जाता है। सूत्रगत 'च' शब्द यह सूचित करता है कि इन्द्रिय आदि अन्य भी पुद्गलके उपकार हैं।
जीवका उपकार
परस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥ २१॥ जीव परस्पर उपकार करते हैं जैसे पिता-पुत्र, स्वामी-सेवक और गुरु-शिष्य आदि । स्वामी धनादिके द्वारा सेवकका और सेवक अनुकूल कार्य के द्वारा स्वामीका उपकार करता है। गुरु शिष्यको विद्या देता है तो शिष्य शुश्रूषा आदिसे गुरुको प्रसन्न रखता है । सूत्रगत उपग्रह शब्द सूचित करता है कि सुख, दुःख, जीवित और मरण द्वारा भी जीव परस्पर उपकार करते हैं।
कालका उपकार--- वतनापरिणामक्रियाः परत्वापरत्वे च कालस्य ।। २२ ॥ वर्तना, परिणाम, क्रिया,परत्व और अपरत्व ये काल द्रव्यके उपकार हैं । कहीं 'वर्तना परिणामः क्रिया'इन तीनों पदोंमें स्वतन्त्र विभक्तियाँ भी देखी जाती हैं । कहीं 'वर्तनापरिणामक्रियाः' ऐसा समस्त पद उपलब्ध होता है । सब पदार्थों में स्वभावसे ही प्रतिसमय परिवर्तन होता रहता है लेकिन उस परिवर्तनमें जो बाह्य कारण है वह परमाणुरूप कालद्रव्य है। कालद्रव्यके निमित्तसे होनेवाले परिवर्तन का नाम वर्तना है। वर्तनासे कालद्रव्य का अस्तित्व सिद्ध होता है । चावलोंको वर्तन में अग्निपर रखने के कुछ समय बाद ओदन (भात) बन कर तैयार हो जाता है। चावलोंसे जो ओदन बना वह एक समयमें और एक साथ ही नहीं बना किन्तु चावलों में प्रत्येक समय सूक्ष्म परिणमन होते होते अन्तमें स्थूल परिणमन दृष्टिगोचर होता है। यदि प्रति समय सूक्ष्म परिणमन न होता तो स्थूल परिणमन भी नहीं हो सकता था। अतः चावलों में जो प्रति समय परिवर्तन हुआ वह काल रूप बाह्य कारणकी
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