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पश्चम अध्याय
५।२-१२]
४१९ पुद्गल परमाणु रह सकता है उतने आकाश देशको प्रदेश कहते हैं । असंख्यातके तीन भेद हैं-जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्योत्कृष्ट । उनमेंसे यहाँ अजघन्योत्कृष्ट लिया गया है। धर्म और अधर्म द्रव्य पूरे लोकाकाशमें व्याप्त है । एक जीव लोकाकाश प्रमाण प्रदेशवाला होने पर भी प्रदेशोंमें संकोच और विस्तारकी अपेक्षा स्वकर्मानुसार प्राप्त शरीरप्रमाण ही रहता है । लोकपूरणसमुद्घातके समय जीव पूरे लोकाकाशमें व्याप्त हो जाता है। जिस समय जीव लोकपूरणसमुद्धात करता है उस समय मेरुके नीचे चित्रवज्र पटलके मध्यमें जीवके पाठ मध्य प्रदेश रहते हैं और शेष प्रदेश पूरे लोकाकाशमें व्याप्त हो जाते हैं । दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरणकी अपेक्षा चार समय प्रदेशों के विस्तार में और चार समय संकोचमें इस प्रकार लोकपूरणसमुद्धात करनेमें आठ समय लगते हैं।
आकाशस्यानन्ताः ॥९॥ आकाश द्रव्यके अनन्त प्रदेश हैं । पर लोकाकाशके असंख्यात ही प्रदेश हैं ।
संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ॥ १० ॥ पुद्गल द्रव्यके संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश है। सूत्रमें 'च' शब्दसे अनन्तका ग्रहण किया गया है । अनन्तके तीन भेद हैं-परीतान्त,युक्तानात और अनन्तानन्त । यहाँ तीनों अनन्तोंका ग्रहण किया है। किसो द्वचणुक आदि पुद्गलके संख्यात प्रदेश होते हैं। दो अणुसे अधिक और डेड़ सौ अंक प्रमाण पर्यन्त पुद्गल परमाणुओंके समूहको संख्यातप्रदेशी स्कंध कहते हैं । लोकाकाशके प्रदेश प्रमाण परमाणुओंवाला स्कन्ध असंख्यात प्रदेशी होता है। इसी प्रकार कोई स्कन्ध असंख्याता संख्यात प्रदेशवाला, कोई परीतान्त प्रदेशवाला, कोई युक्तानन्त प्रदेशवाला और कोई अनन्तानन्त प्रदेशवाला भी होता है।
प्रश्न–लोकाकाशके असंख्यात प्रदेश हैं फिर वह अनन्त और अनन्तानन्त प्रदेश वाले पुद्गल द्रव्यका आधार कैसे हो सकता है ?
उत्तर-पुद्गल परमाणुओंमें सूक्ष्म परिणमन होनेसे और अव्याहत अवगाहन शक्ति होनेसे आकाशके एक प्रदेशमें भी अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु रह सकते हैं।
नाणोः ॥ ११ ॥ परमाणु के दो आदि प्रदेश नहीं होते हैं । परमाणु एकप्रदेशी ही होता है। सबसे छोटे हिस्सेका नाम परमाणु है । अतः परमाणुके भेद या प्रदेश नहीं हो सकते । परमाणुसे छोटा और आकाशसे बड़ा कोई नहीं है। अतः परमाणुके प्रदेशोंमें भेद नहीं डाला जा सकता।
द्रव्योंके रहनेका स्थान
लोकाकाशेऽवगाहः ॥ १२ ॥ जीव आदि द्रव्योंका अवगाह ( स्थान ) लोकाकाशमें है। लोकाकाश आधार और जीवादि द्रव्य आधेय हैं। लेकिन लोकाकाशका अन्य कोई आधार नहीं है वह अपने ही आधार है।
प्रश्न-जैसे लोकाकाशका कोई दूसरा आधार नहीं है उसी प्रकार धर्मादि द्रव्योंका भो दूसरा आधार नहीं होना चाहिये अथवा धर्मादिके आधारकी तरह आकाशका भी दूसरा आधार होना चाहिये ?
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