________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[४:१९
४०८
तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार इस सूत्र में यद्यपि नव अनुदिशोंका नाम नहीं आया है लेकिन 'नवसु वेयकेषु' में नव शब्दको नव अनुदिशोंको ग्रहण करनेके लिये पृथक् रखा गया है । सूत्रमें सर्वार्थसिद्धिको सर्वोत्कृष्ट होनेके कारण "सर्वार्थसिद्धौ” इस प्रकार पृथक् रक्खा गया है। प्रत्येक स्वर्गका नाम उस स्वर्गके इन्द्र के नामसे पड़ा है।
__सबसे नीचे सौधर्म और ऐशान कल्प हैं। और इनके ऊपर अच्युत स्वर्ग पर्यन्त क्रमशः दो दो कल्प हैं । आरण और अच्युत कल्पके ऊपर नव ग्रैवेयक, नव ग्रैवेयकों के ऊपर नव अनुदिश और नव अनुदिशों के ऊपर पांच अनुत्तर विमान हैं।
एक लाख योजन ऊचा मेरुपर्वत है । मेरुपर्वतकी चोटी और सौधर्मस्वर्गके इन्द्रक ऋतुविमानमें एक बालमात्रका अन्तर है। मेरुसे ऊपर ऊर्ध्वलोक मेरुसे नीचे अधोलोक और मेरुके बराबर मध्यलोक या तिर्यक लोक है।
__ सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के इकतीस पटल हैं। उनमें प्रथम ऋतु पटल है। ऋतु पटलके बीच में ऋतु नामक पैंतालीस लाख योजन विस्तृत इन्द्रक ( मध्यवर्ती ) विमान है। ऋतु विमानसे चारों दिशाओं में चार विमान श्रेणियाँ है। प्रत्येक विमानश्रेणीमें बासठ विमान हैं। विदिशाओंमें प्रकीर्णक विमान हैं ।। ऋतु पटलसे ऊपर प्रभा नामक अन्तिम पटल पर्यन्त प्रत्येक पटल के प्रत्येक श्रेणी विमानोंकी संख्या क्रमसे एक एक कम होती गई है। इस प्रकार अन्तिम पटल में प्रत्येक दिशामें बत्तीस श्रेणी विमान हैं। प्रभा नामक इकतीसवें पटलके मध्य में प्रभा नामक इन्द्रक विमान है । इन्द्रक विमानकी चारों दिशाओं में चार विमान श्रेणियाँ हैं। प्रत्येक विमान श्रेणीमें बत्तीस विमान हैं। दक्षिण दिशामें जो षिमानश्रेणी है उसके अठारहवें विमान में सौधर्म इन्द्रका निवास है। और उत्तर दिशाके अठाहरवें विमानमें ऐशान इन्द्र रहता है। उक्त दोनों विमानों के तीन तीन कोट हैं। बाहरके कोटमें अनीक और पारिषद जातिके देव रहते हैं। मध्यके कोटमें त्रायस्त्रिंश देव रहते हैं और तीसरे कोटके भीतर इन्द्र रहता है। इस प्रकार सब स्वर्गों में इन्द्रोंका निवास समझना चाहिये।
... पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशाकी तीन विमान श्रेणियाँ और आग्नेय और नैर्ऋत्य दिशासे प्रकीर्णक विमान सौधर्म स्वर्गकी सीमामें हैं। उत्तरदिशाकी एक विमान श्रेणी और ईशान दिशाके प्रकीर्णक विमान ऐशान स्वर्गकी सीमामें हैं।
इसके ऊपर सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग हैं । इनके सात पटल हैं। प्रथम अञ्जन पटलके मध्यमें अञ्जन नामक इन्द्रक विमान है। इन्द्र विमानकी चारों दिशाओं में चार विमान श्रेणियाँ हैं। प्रत्येक श्रेणी में इकतीस विमान हैं। प्रथम पटलसे अन्तिम पटल पर्यन्त प्रत्येक पटल में प्रत्येक श्रेणीमें विमानोंकी संख्या क्रमशः एक एक कम है । सातवें पटलमें इन्द्रक विमानकी चारों दिशाओं में चार विमान श्रेणियाँ हैं। प्रत्येक श्रेणीमें पच्चीस विमान हैं । इस पटल की दक्षिण श्रेणीके पन्द्रहवें विमानमें सानत्कुमार और उत्तर श्रेणीके पन्द्रहवें विमान में माहेन्द्र इन्द्र रहते हैं।
इसके ऊपर ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर स्वर्ग हैं। इनके चार पटल हैं। प्रथम अरिष्ट पटलके मध्यमें अरिष्ट नामक इन्द्रक विमानकी चारों दिशाओं में चार विमान श्रेणियाँ हैं। प्रत्येक श्रेणी में चौबीस विमान हैं। ऊपरके पटलों में श्रेणीविमानोंकी संख्या क्रमशः एक एक कम है। चौथे पटल में प्रत्येक श्रेणी में इक्कीस विमान हैं । इस पटलकी दक्षिण श्रेणीके बारहवें विमानमें ब्रह्मेन्द्र और उत्तर श्रेणीके बारहवें विमानमें ब्रह्मोत्तर इन्द्र रहते हैं ।
For Private And Personal Use Only