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३९६ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
। ३।३४-३६ पुष्करद्वीपका वर्णन
पुष्कराधे च ।। ३४ ॥ पुष्कर द्वीपके अर्द्धभाग में भी सब रचना जम्बूद्वीपसे दूनी है।
धातकीखण्ड द्वीपके समान पुष्करार्धमें भी दक्षिणसे उत्तर तक लम्बे और आठ लाख योजन विस्तृत दो इक्ष्वाकार पर्वत हैं । इस कारण पुष्कराद्ध के दो भाग हो गये है। दोनों भागों में दो मेरु पर्वत हैं एक पूर्वमेरु और दूसरा अपरमेरु । प्रत्येक मेरुसम्बन्धी भरत आदि सात क्षेत्र और हिमवान् आदि छह पर्वत हैं । पुष्कराध द्वीपमें सारी रचना धातकीखण्ड द्वीपके समान ही है। विशेषता यह है कि पुष्करार्धक हिमवान् श्रादि पर्वतोंका विस्तार धातकीखण्डके हिमवान आदि पर्वतोंके विस्तारसे दूना है। पुष्करद्वीपके मध्यमें गोलाकार मानुषोत्तर पर्वत है अतः इस पर्वतसे विभक्त होने के कारण इसका नाम पुष्कराद्ध पड़ा। आधे पुष्कर द्वीपमें ही मनुष्य हैं अतः पुष्कराद्ध का ही वर्णन यहाँ किया गया है।
मनुष्य क्षेत्रकी सीमा
प्राङ मानुषोत्तरान्मनुष्याः ॥ ३५ ॥ मानुषोत्तर पर्वतके पहिले ही मनुष्य होते हैं, आगे नहीं । मानुषोत्तर पर्वतके बाहर विद्याधर और ऋद्धिप्राप्त मुनि भी नहीं जाते हैं। मनुष्य क्षेत्रके त्रस भी बाहर नहीं जाते हैं। पुष्करा की नदियाँ भी मानुषोत्तरके बाहर नहीं बहती हैं।
जब मनुष्य क्षेत्रके बाहर मृत कोई तिर्यश्च या देव मनुष्यक्षेत्रमें आता है तो मनुष्यगत्यानुपूर्वी नाम कर्मका उदय होनेसे मानुषोत्तरके बाहर भी उसको उपचारसे मनुष्य कह सकते हैं । दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण समुद्रात के समय भी मानुषोत्तरसे बाहर मनुष्य जाता है।
मनुष्यों के भेद
आर्या म्लेच्छाश्च ।। ३६ ॥ मनुष्यों के दो भेद हैं-आर्य और म्लेच्छ ।
जो गुणोंसे सहित हों अथवा गुणवान लोग जिनकी सेवा करें उन्हें आर्य कहते हैं। जो निर्लज्जतापूर्वक चाहे जो कुछ बोलते हैं वे म्लेच्छ हैं।
आर्योंके दो भेद हैं-ऋद्धिप्राप्त आर्य और ऋद्धिरहित आर्य । ऋद्धिप्राप्त आयों के ऋद्धियोंके भेदसे आठ भेद हैं । आठ ऋद्धियों के नाम-बुद्धि, क्रिया, विक्रिया, तप, वल, औषध, रस और क्षेत्र।
बुद्धि ऋद्धिप्राप्त आर्यों के अठारह भेद हैं । १ अवधिज्ञानी २ मनःपर्ययज्ञानी ३ केवलज्ञानी, ४ बीजबुद्धिवाले, ५ कोष्ठबुद्धिवाले, ६ सम्भिन्नश्रोत्री, ७ पदानुसारी, ८ दूरसे स्पर्श करनेमें समर्थ, ५ दूरसे रसास्वाद करनेमें समर्थ, १० दूरसे गंध ग्रहण करनेमें समर्थ, ११ दूरसे सुननेमें समर्थ, १२ दूरसे देखनेमें समर्थ, १३ दश पूर्वके ज्ञाता, १४ चौदह पूर्वके ज्ञाता, १५ आठ महा निमित्तोंके जाननेवाले, १६ प्रत्येक बुद्ध, १७ वाद विवाद करने वाले और १८ प्रज्ञाश्रमण । एक बीजाक्षरके ज्ञानसे समस्त शास्त्रका ज्ञान हो जानेको बीजवुद्धि कहते हैं । धान्यागारमें संगृहीत विविध धान्योंको तरह जिस बुद्धिमें सुने हुये वर्ण आदिका बहुत कालतक विनाश नहीं होता है वह कोष्ठबुद्धि है।
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