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३१३६]
तृतीय अध्याय क्रिया ऋद्धि दो प्रकारकी है-जंघादिचारणत्व और आकाशगामित्व । जंघादिचारणत्वके नौ भेद हैं
१ जंघाचारणत्व-भूमिसे चार अंगल ऊपर आकाशमें गमन करना । २ श्रेणिचारणत्व-विद्याधरोंकी श्रेणिपर्यन्त आकाशमें गमन करना । ३ अग्निशिखाचारणत्व-अग्निकी ज्वालाके ऊपर गमन करना। ४ जलचारणत्व-जलको बिना छुए जलपर गमन करना । ५ पत्रचारणत्व-पत्तेको बिना छुए पत्तेपर गमन करना । ६ फलचारणत्व-फलको बिना छुए फलपर गमन करना। ७ पुष्पचारणत्व-पुष्पको बिना छुए पुष्पपर गमन करना । ८ बीजचारणत्व-बीजको बिना छुए बीजपर गमन करना । ९ तन्तुचारणत्व-तन्तुको बिना छुए तन्तुपर गमन करना।
पैरोंके उत्क्षेपण और निक्षेपण (उठाना और रखना) के बिना आकाशमें गमन करना, पर्यङ्कासनसे आकाशमें गमन करना, ऊपरको स्थित होकर आकाशमें गमन करना, अथवा सामान्यरूपसे बैठकर आकाशमें गमन करना आकाशगामित्व है।
अणिमा आदिके भेदसे विक्रिया ऋद्धि अनेक प्रकारकी है।
अणिमा-शरीरको सूक्ष्म बना लेना अथवा ( कमलनाल) में भी प्रवेश करके चक्रवर्तीके परिवारकी विभूतिको बना लेना अणिमा है ।
महिमा-शरीरको बड़ा बना लेना महिमा है। लघिमा-शरीरको छोटा बना लेना लघिमा है। गरिमा-शरीरको भारी बना लेना गरिमा है।
प्राप्ति-भूमिपर रहते हुए भी अङ्गुलिके अग्र भागसे मेरुकी शिखर, चन्द्र, सूर्य आदिको स्पर्श करनेकी शक्तिका नाम प्राप्ति ऋद्धि है।
- प्राकाम्य--जलमें भूमिकी तरह चलना और भूमिपर जलकी तरह गमन करना, अथवा जाति, क्रिया, गुण, द्रव्य, सैन्य आदिका बनाना प्राकाम्य है।
ईशित्व-तीन लोकके प्रभुत्वको पाना ईशित्व है। वशित्व-सम्पूर्ण प्राणियोंको वशमें करनेकी शक्तिका नाम वशित्व है।
अप्रतीघात–पर्वत पर भी आकाशकी तरह गमन करना, अनेक रूपोंका बनाना अप्रतीघात है।
कामरूपित्व—मूर्त ओर अमूर्त अनेक आकारोंका बनाना कामरूपित्व है। अन्तर्धान -रूपको अदृष्ट बना लेना ।
तप ऋद्धिके सात भेद हैं-१ घोरतप, २ महातप, ३ उग्रतप, ४ दीप्ततप, ५ तप्ततप, ६ घोरगुणब्रह्मचारिता और ७ घोरपराक्रमता ।
घोरतप-सिंह, व्याघ्र, चीता, स्वापद आदि दुष्टप्राणियोंसे युक्त गिरिकन्दरा आदि स्थानोंमें और भयानक श्मशानों में तीन आतप, शीत आदिकी बाधा होनेपर भी घोर उपसर्गोंका सहना घोरतप है।
महातप---पक्ष, मास, छह मास और एक वर्षका उपवास करना महातफ है । एक वर्षके उपवासके उपरान्त पारणा होती है और केवलज्ञान भी हो जाता हैं। इसलिये एक वर्षसे अधिक उपवास नहीं होता है।
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