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तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[ ३।२९-३२ हैमवत आदि क्षेत्रोंमें आयुका वर्णनएकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षकदैवकुरवकाः ॥ २९ ॥
हैमवत, हरिक्षेत्र तथा देवकुरुमें उत्पन्न होनेवाले प्राणियोंकी आयु क्रमशः एक पल्य, दो पल्य और तीन पल्यकी है। शरीरकी ऊंचाई क्रमशः दो हजार धनुष, चार हजार धनुष और छह हजार धनुष है । भोजन क्रमशः एक दिन बाद, दो दिन बाद तथा तीन दिन बाद करते हैं। शरीरका रंग क्रमसे नील कमलके समान, कुन्द पुष्पके समान और कांचन वर्ण होता है।
उत्तरके क्षेत्रों में आयुकी व्यवस्था
तथोत्तराः ॥ ३०॥ उत्तरके क्षेत्रोंके निवासियोंकी आयु दक्षिण क्षेत्रोंके निवासियोंके समान ही है। अर्थात् हैरण्यवत,रम्यक क्षेत्र तथा उत्तर कुरुमें उत्पन्न होनेवाले प्राणियोंकी आयु क्रमशः एक, दो और तीन पल्यकी है।
विदेह क्षेत्रमें आयुकी व्यवस्था
विदेहेषु संख्येयकालाः ॥३१॥ विदेह क्षेत्रमें संख्यातवर्षकी आयु होती है। प्रत्येक मेरुसम्बन्धी पांच पूर्वविदेह और पाँच अपर विदेह होते हैं। इन दोनों विदेहोंका महाविदेह कहते हैं । विदेहमें उत्कृष्ट आयु पूर्वकोटि वर्ष और जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त है।
विदेहमें सदा दुषमसुषमा काल रहता है। मनुष्योंके शरीरकी ऊँचाई पाँच सौ धनुष है । वहाँ के मनुष्य प्रतिदिन भोजन करते हैं।
सत्तर लाख करोड़ और छप्पन हजार करोड़ वर्षों के समूहका नाम एक पूर्व है । अर्थात् ७०५६०००००००००० वर्षका पूर्व होता है।
भरत क्षेत्रका दूसरी तरहसे विस्तारवर्णनभरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः ॥ ३२ ॥ भरतक्षेत्रका विस्तार जम्बूद्वीपके एक सौ नम्वेवाँ भाग है। अर्थात् जम्बूद्वीपके एक सौ नव्वे भाग करने पर एक भाग भरत क्षेत्रका विस्तार है।
जम्बू द्वीपके अन्तमें एक वेदी है उसका विस्तार जम्बूद्वीपके विस्तार में ही सम्मिलित है। इसी प्रकार सभी द्वीपोंकी वेदियोंका विस्तार द्वीपोंके विस्तारके अन्तर्गत ही है । लवण समुद्रके मध्यमें चारों दिशाओं में पाताल नाम वाले अलञ्जलाकार चार बड़वानल हैं जो एक लाख योजन गहरे, मध्यमें एक लाख योजन विस्तारयुक्त और मुख तथा मूल में दश हजार योजन विस्तारवाले हैं। चारों विदिशाओं में चार क्षुद्र बड़वानल भी हैं। जिनकी गहराई दश हजार योजन, मध्यमें विस्तार दश हजार योजन और मुख तथा मूलमें विस्तार एक हजार योजन है । इन आठ बड़वानलोंके आठ अन्तरालों में से प्रत्येक अन्तरालमें पंक्तिमें स्थित एक सौ पच्चीस बाडव हैं जिनकी गहराई एक हजार योजन, मध्य में विस्तार एक हजार योजन और मुख तथा मूलमें पाँच सौ योजन विस्तार है। इस प्रकार
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