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३८८ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[३।१८-२१ अन्य सरोवरों के विस्तार आदिका वर्णन--
तद्विगुणद्विगुणा हृदाः पुष्कराणि च ॥ १८ ।। आगेके सरोवरों और कमलों का विस्तार प्रथम सरोवर और उसके कमलके विस्तारसे दूना दूना है । अर्थात् महापद्म दो हजार योजन लम्बा, एक हजार योजन चौड़ा और बीस योजन गहरा है। इसके कमलका विस्तार दो योजन है। इसी प्रकार महापद्मके विस्तारसे दूना विस्तार तिगिन्छ हदका है। केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक हृदोंका विस्तार क्रमसे तिगिञ्छ, महापद्म और पद्म ह्रदके विस्तारके समान है। इनके कमलोंका विस्तार भी तिगिञ्छ आदिके कमलोंके विस्तारके समान है।
कमलोंमें रहनेवाली देवियों के नाम-- तन्निवासिन्यो देव्यः श्रीहीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः पल्योपमस्थितयः
ससामानिकपरिषत्काः ॥ १९॥ उन पद्म आदि सरोवरोंके कमलों पर क्रमसे श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ये छह देवियाँ सामानिक और परिषद जातिके देवों के साथ निवास करती हैं। देवियों को आयु एक पल्प है।
छहों कमलोंकी कणिकाओंके मध्यमें एक कोस लम्बे, अर्द्धकोस चौड़े और कुछ कम एक कोस ऊँचे इन देवियों के प्रासाद हैं जो अपनी कान्तिसे शरदऋतुके निर्मल चन्द्रमा की प्रभाको भी तिरस्कृत करते हैं । कमलोंके परिवार कमलों पर सामानिक और परिषद देव रहते हैं। श्री, ही और धृति देवियाँ अपने अपने परिवार सहित सौधर्म इन्द्रकी सेवामें तत्पर रहती हैं और कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी देवियाँ ऐशान इन्द्रकी सेवामें तत्पर रहती हैं।
नदियोंका वर्णनगङ्गासिन्धुरोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्तासीतासीतोदानारीनरकान्तासुवर्णरूप्यकूलारक्तार
तोदाः सरितस्तन्मध्यगाः ॥ २० ॥ . गङ्गा, सिन्धु, रोहित्, रोहितास्या, हरित्, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला, रूप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा ये चौदह नदियाँ भरत आदि सात क्षेत्रों में बहती हैं।
___नदियों के बहनेका क्रम
द्वयोयोः पूर्वाः पूर्वगाः ॥ २१ ॥ दो दो नदियों में से पहिली पहिली नदी पूर्व समुद्र में जाती है । अर्थात् गङ्गा-सिन्धुमें गङ्गा नदी पूर्व समुद्रको जाती है, रोहित्-रोहितस्यामें रोहित् नदी पूर्व समुद्रको जाती है। यही क्रम आगे भी है।
हिमवान् पर्वतके ऊपर जो पद्म हद है उसके पूर्व तोरणद्वारसे गङ्गा नदी निकली है जो विजयार्द्ध पर्वतको भेदकर म्लेच्छ खण्डमें बहती हुई पूर्व समुद्र में मिल जाती है । पद्मह्रदके पश्चिम तोरणद्वारसे सिन्धु नदी निकली है जो विजयार्द्ध पर्वत को भेदकर म्लेच्छ खण्डमें बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती है। ये दोनों नदियाँ भरत क्षेत्रमें बहती हैं। हिमवान् पर्वतके ऊपर स्थित पद्महदके उत्तर तोरणद्वारसे रोहितास्या नदी निकली है जो जघन्य भोगभूमिमें बहती हुई पश्चिम समुद्रमें मिल जाती है। महापद्मदके दक्षिण तोरण
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