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३९० तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[३२२३-२५ जाती हैं। अर्थात् गङ्गा और सिन्धुमें से सिन्धु पश्चिम समुद्रको जाती है । यही क्रम आगे भी है।
नदियों का परिवारचतुर्दशनदीसहस्रपरिवृता गङ्गासिन्ध्वादयो नद्यः ॥२३॥ गङ्गा सिन्धु आदि नदियाँ चौदह हजार परिवार नदियोंसे सहित हैं।
यद्यपि बीसवें सूत्र गत 'सरितस्तन्मध्यगा' इस वाक्यमें आये हुये सरित् शब्दसे इस सूत्रमें भी नदीका सम्बन्ध हो जाता क्योंकि यह नदियोंका प्रकरण है फिर भी इस सूत्र में 'नद्यः' शब्दका ग्रहण यह सूचित करता है कि आगे आगेकी युगल नदियोंके परिवारनदियोंकी संख्या पूर्व पूर्वकी संख्यासे दूनी दूनी है।
___ यदि 'चतुर्दशनदीसहस्रपरिवृता नद्यः' इतना ही सूत्र बनाते तो 'अनन्तरस्य विधि, प्रतिषेधो वा' इस नियमके अनुसार 'शेषास्त्वपरगाः' इस सूत्रमें कथित पश्चिम समुद्रको जानेवाली नदियोंका ही यहाँ ग्रहण होता। और 'चतुर्दशनदीसहस्रपरिवृता गङ्गादयो नद्यः' ऐसा सूत्र करनेपर पूर्व समुद्रको. जानेवाली नदियोंका ही ग्रहण होता । अतः सब नदियोंको ग्रहण करनेके लिये 'गङ्गासिन्ध्वादयो' वाक्य सूत्र में आवश्यक है।
गंगा और सिन्धु नदियोंकी परिवार नदियाँ चौदह चौदह हजार,रोहित और रोहितास्या नदियोंकी परिवार नदियाँ अट्ठाईस अट्ठाईस हजार, हरित और हरिकान्ता नदियोंकी परिवार नदियाँ छप्पन छप्पन हजार, सीता और सीतोदा नदियों में प्रत्येककी परिवार नदियाँ एक लाख बारह हजार हैं। नारी और नरकान्ता, सुवर्णकूला और रूप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा नदियों के परिवार नदियोंकी संख्या क्रमसे हरित और हरिकान्ता, रोहित और रोहितास्या, गंगा और सिन्धु नदियों के परिवार नदियोंकी संख्याके समान है।
भोगभूमिकी नदियों में त्रस जीव नहीं होते हैं। जम्बूद्वीप सम्बन्धी मूल नदियाँ अठत्तर हैं। इनकी परिवार नदियोंकी संख्या पन्द्रह लाख बारह हजार है । जम्बूद्वीपमें विभंग नदियाँ बारह हैं।
इस प्रकार पञ्चमेरु सम्बन्धी मूल नदियाँ तीन सौ नव्वे हैं और इनकी परिवार नदियोंकी संख्या पचत्तर लाख साठ हजार है । विभंग नदियोंकी संख्या साठ है।
भरत क्षेत्रका विस्तारभरतः षड्विंशतिपञ्चयोजनशतविस्तारः षट्चैकोनविंशतिभागाः योजनस्य ॥२४॥
भरत क्षेत्रका विस्तार पाँच सौ छब्बीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें से छह भाग है । ५२६६६ योजन विस्तार है ।
आगेके पर्वत और क्षेत्रोंका विस्तारःतद्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ताः ॥ २५ ॥
आगे आगेके पर्वत और क्षेत्रोंका विस्तार भरत क्षेत्रके विस्तारसे दूना दूना है। लेकिन यह क्रम विदेह क्षेत्र पर्यन्त ही है। विदेह क्षेत्रसे उत्तरके पर्वतों और क्षेत्रोंका विस्तार विदेह क्षेत्रके विस्तारसे आधा आधा होता गया है।
भरत क्षेत्र के विस्तारसे हिमवान् पर्वतका विस्तार दूना है । हिमवान् पर्वतके विस्तार
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