________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३।२२ ]
तृतीय अध्याय
३८९
द्वारसे रोहित नदी निकली है जो जघन्य भोगभूमिमें बहती हुई पूर्व समुद्र में मिल जाती है। रोहित और रोहितास्या नदी हैमवत क्षेत्र में बहती हैं। महापद्महृदके उत्तरतोरण. द्वार हरिकान्ता नदी निकली है जो मध्यम भोगभूमि में बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती है । निषध पर्वतके ऊपर स्थित तिगिन्छ हृदके दक्षिण तोरणद्वार से हरित नदी निकली है जो मध्यम भोगभूमि में बहती हुई पूर्व समुद्र में मिलती है। हरित, और हरिकान्ता नदियाँ हरिक्षेत्र में बहती हैं।
तिमि हृदके उत्तर तोरणद्वार से सीतोदा नदी | निकली है जो अपरविदेह और उत्तम भोगभूमिमें बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती हैं। नील पर्वतपर स्थित केसरी दक्षिण तोरणद्वार से सीता नदी निकली है जो उत्तम भोगभूमि और पूर्व विदेहमें बहती हुई पूर्व समुद्र में मिल जाती हैं । सीता और सीतोदा नदियाँ विदेह क्षेत्रमें बहती हैं ।
केसरी हृदके उत्तर तोरणद्वारसे नरकान्ता नदी निकली है जो मध्यम भोगभूमिमें बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती है । रुक्मि पर्वतपर स्थित महापुण्डरीक हदके दक्षिण तोरणद्वार से नारी नदी निकली है जो मध्यम भोगभूमि में बहती हुई पूर्व समुद्र में मिल जाती है। नारी और नरकान्ता नदी रम्यक क्षेत्र में बहती हैं।
महापुण्डरीक हृदके उत्तर तोरणद्वारसे रूप्यकूला नदी निकली है जो जघन्य भोगभूमि में बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती है। शिखरी पर्वतपर स्थित पुण्डरीक दक्षिण तोरणद्वार से सुवर्णकूला नदी निकली है जो जघन्य भोगभूमिमें बहती हुई पूर्व समुद्र में मिलती है। सुवर्णकूला और रूप्यकूला नदी हैरण्यवत क्षेत्रमें बहती हैं ।
पुण्डरीक हृदके पश्चिम तोरणद्वार से रक्तोदा नदी निकली है जो विजयार्द्ध पर्वतको भेदकर म्लेच्छ खण्ड में बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती है। पुण्डरीक हृदके पूर्व तोरणद्वारसे रक्ता नदी निकली है जो विजयार्ध पर्वतको भेदकर म्लेच्छ खण्ड में बहती हुई पूर्व समुद्र में मिलती है । रक्ता और रक्तोदा नदी ऐरावत क्षेत्र में बहती है ।
देवकुरुके मध्य में सीतोदा नदी सम्बन्धी पाँच हृद हैं । प्रत्येक हदके पूर्व और पश्चिम तटों पर पाँच पाँच सिद्धकूट नामक क्षुद्र पर्वत हैं । इस प्रकार पाँचों हृदोंके तटोंपर पचास क्षुद्र पर्वत है । ये पर्वत पचास योजन लम्बे, पच्चीस योजन चौड़े और सेंतीस योजन ऊँचे हैं । प्रत्येक पर्वतके ऊपर अष्टप्रातिहार्य संयुक्त, रत्न, सुवर्ण और चाँदीसे निर्मित, पल्यङ्कासनारूढ़ और पूर्वाभिमुख एक एक जिनप्रतिमा है ।
अपर विदेह में भी सीतोदा नदी सम्बन्धी पाँच हृद हैं। इन हदोंके दक्षिण और उत्तर तटोंपर पाँच पाँच सिद्धकूट नामके क्षुद्र पर्वत हैं । अन्य वर्णन पूर्ववत् है ।
इसी प्रकार उत्तर कुरुमें सीता नदी सम्बन्धी पाँच हृद हैं । इन हदोंके पूर्व और पश्चिम तटों पर पूर्ववत् पचास सिद्धकूट पर्वत हैं। पूर्व विदेह में भी सीता नदी सम्बन्धी पाँच हृद हैं। इन हदोंके दक्षिण और उत्तर तटोंपर पचास सिद्धकूट पर्वत हैं । इस प्रकार जम्बूद्वीप के मेरु सम्बन्धी सिद्धकूट दो सौ हैं और पाँचों मेरु सम्बन्धी सिद्धकूटों की संख्या एक हजार है ।
शेषास्त्वपरगाः ॥ २२ ॥
पूर्व सूत्रमें कही गई नदियोंसे शेष बची हुई नदियाँ पश्चिम समुद्रको
For Private And Personal Use Only
.