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प्रथम अध्याय २ सूत्रकृताङ्ग--इसमें ज्ञान, विनय, छेदोपस्थापना आदि क्रियाओंका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या छत्तीस हजार है।
३ स्थानाङ्ग-एक दो तीन आदि एकाधिक स्थानों में षड्द्रव्य आदिका निरूपण है। इसके पदोंकी संख्या वयालीस हजार है।
४ समवायाङ्ग-इसमें धर्म, अधर्म, लोकाकाश,एकजीव असंख्यातप्रदेशी हैं । सातवें नरकका मध्यबिल जम्बूद्वीप,सर्वार्थसिद्धिका विमान और नन्दीश्वर द्वीपकी वापी इन सबका एकलाख योजन प्रमाण है, इत्यादि वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या चौंसठ हजार है।
५ व्याख्याप्रज्ञप्ति-इसमें जीव हैं या नहीं इत्यादि प्रकारके गणधरके द्वारा किये गये साठ हजार प्रश्नोंका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या दो लाख अट्ठाईस हजार है।
६ ज्ञातृकथा-इसमें तीर्थंकरों और गणधरोंकी कथाओंका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या पाँच लाख पचास हजार है।
__ ७ उपासकाध्ययन--इसमें श्रावकोंके आचारका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या ग्यारह लाख सत्तर हजार है।
८ अन्तःकृतदश-प्रत्येक तीर्थकरके समयमें दश दश मुनि होते हैं जो उपसर्गोको सहकर मोक्ष पाते हैं। उन मुनियोंकी कथाओंका इसमें वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या तेईस लाख अट्ठाईस हजार है।
९ अनुत्तरौपपादिकदश–प्रत्येक तीर्थंकरके समय दश दश मुनि होते हैं जो उपसर्गोंको सहकर पाँच अनुत्तर विमानोंमें उत्पन्न होते हैं। उन मुनियोंकी कथाओंका इसमें वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या बानवे लाख चवालीस हजार है।
- १० प्रश्नव्याकरण---इसमें प्रश्नके अनुसार नष्ट, मुष्टिगत आदिका उत्तर है। इसके पदोंकी संख्या तेरानवे लाख सोलह हजार है।
११ विपाकसूत्र-इसमें कर्मोके उदय, उदीरणा और सत्ताका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या एक करोड़ चौरासी लाख है।
१२ दृष्टिवाद नामक बारहवें अङ्गके पाँच भेद हैं-१ परिकर्म, २ सूत्र, ३ प्रथमानुयोग, ४ पूर्वगत और ५ चूलिका । इनमें परिकर्मके पाँच भेद हैं-१ चन्द्रप्रज्ञप्ति, २ सूर्यप्रज्ञप्ति, ३ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ४ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति ।
१ चन्द्रप्रज्ञप्ति-इसमें चन्द्रमाके आयु, गति, वैभव आदिका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या छत्तीस लाख पाँच हजार है। २ सूर्यप्रज्ञप्ति-इसमें सूर्यकी आयु, गति, यभव आदिका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या पाँच लाख तीन हजार है। ३ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-इसमें जम्बूद्वीपका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या तीन लाख पच्चीस हजार है। ४ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति-इसमें सभी द्वीप और सागरोंका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या बावन लाख छत्तीस हजार है । ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति-इसमें छह द्रव्योंका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या चौरासी लाख छत्तीस हजार है।
२ सूत्र-इसमें जीवके कर्तृत्व, भोक्तत्व आदिकी सिद्धि तथा भूतचैतन्यवादका खण्डन है। इसके पदोंकी संख्या अठासी लाख है। __ ३ प्रथमानुयोग-उसमें तिरसठ शलाका महापुरुषोंका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या पाँच हजार है।
___४ पूर्वगतके उत्पादपूर्व आदि चौदह भेद हैं।
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