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तत्त्वार्थवृत्ति - हिन्दी-सार
मति और श्रुतज्ञानका विषयमतिश्रुतयोर्निबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ॥ २६ ॥
मति और श्रुतज्ञानका विषय छहों द्रव्योंकी कुछ पर्यायें हैं । अर्थात् मति और श्रुत द्रव्योंकी समस्त पर्यायोंको नहीं जानते हैं किन्तु थोड़ी पर्यायोंको जानते हैं । प्रश्न- धर्म, अधर्म आदि श्रतीन्द्रिय द्रव्यों में इन्द्रियजन्य मतिज्ञानकी प्रवृत्ति कैसे हो सकती है ?
उत्तर--- अनिन्द्रिय या मन नामकी एक इन्द्रिय है । नोइन्द्रियावरण के क्षयोपशम होनेपर अनिन्द्रियके द्वारा धर्मादि द्रव्योंकी पर्यायोंका अवग्रह आदि रूपसे ग्रहण होता है । और मतिज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान भी उन विषयों में प्रवृत्त होता है । अतः मति और श्रुतके द्वारा धर्मादि द्रव्योंकी पर्यायोंको जानने में कोई विरोध नहीं है ।
अवधिज्ञानका विषयरूपिष्वव धेः ॥ २७ ॥
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अवधिज्ञान पुद्गल द्रव्यकी कुछ पर्यायोंको और पुदलसे सम्बन्धित जीवकी कुछ पर्यायोंको जानता है सब पर्यायोंको नहीं । अवधिज्ञानका विषय रूपी द्रव्य ही है अरूपी द्रव्य नहीं ।
मन:पर्ययज्ञानका विषय
तदनन्तभागे मनः पर्ययस्य ॥ २८ ||
अवधिज्ञान की तरह मन:पर्ययज्ञान सर्वावधिज्ञानके द्वारा जाने गये द्रव्यके अनन्तवें भाग को जानता है ।
केवलज्ञानका विषय
सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ।। २९
[ ११२६-३१
केवलज्ञानका विषय समस्त द्रव्य और उनकी सम्पूर्ण पर्यायें है । केवलज्ञान सम्पूर्ण द्रव्योंकी त्रिकालवर्ती सब पर्यायोंको एक साथ जानता है ।
एकजीवके एक साथ ज्ञान होनेका परिमाण --
एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्ना चतुर्भ्यः || ३० ॥
एकजीव में एक साथ कमसे कम एक और अधिक से अधिक चार ज्ञान हो सकते हैं । यदि एक ज्ञान होगा तो केवलज्ञान । दो होंगे तो मति और श्रुत। तीन होंगे तो मति, श्रुत, अवधि या मति, श्रुत और मन:पर्यय । चार ज्ञान हों तो मति, श्रुत, अवधि और मन:पर्यय होंगे। केवलज्ञान क्षायिक है और अन्य ज्ञान क्षायोपशमिक हैं । अतः केवलज्ञानके साथ क्षायोपशमिक ज्ञान नहीं हो सकते ।
कुमति, कुश्रुत और कुअवधिमतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च ॥ ३१ ॥
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मति श्रुत और अवधिज्ञान विपरीत भी होते हैं, अर्थात् मिथ्यादर्शन के उदय होनेसे ये ज्ञान मिध्याज्ञान कहलाते हैं । मिथ्याज्ञानके द्वारा जीव पदार्थोंको विपरीत रूपसे जानता