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३६४ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[२१४-५ क्षायिक भावके भेदज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च ॥४॥ ज्ञान,दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य और च शब्दसे सम्यक्त्व और चारित्र ये नव क्षायिक भाव हैं। .
___ केवलज्ञानावरणके क्षयसे केवलज्ञान क्षायिक है। केवलदर्शनावरणके क्षयसे केवलदर्शन क्षायिक होता है । दानान्तरायके क्षयसे अनन्त प्राणियोंका अनुग्रह करने वाला अनन्त अभयदान होता है। लाभान्तरायके क्षयसे अनन्तलाभ होता है । इसीसे केवली भगवान की शरीरस्थिति के लिए परम शुभ सूक्ष्म अनन्त परमाणु प्रतिसमय आते हैं। इसलिए कवलाहार न करने परभी उनके शरीरकी स्थिति बराबर बनी रहती है। भोगान्तरायके क्षयसे अनन्तभोग होता है। जिससे गन्धोदकवृष्टि पुष्पवृष्टि आदि होती हैं। उपभोगान्तरायके क्षयसे अनन्त उपभोग होता है, इससे छत्र चमर आदि विभूतियाँ होती है। वीर्यान्तरायके क्षयसे अनन्त वीर्य होता है। केवली क्षायिकवीर्यके कारण केवलज्ञान और केवलदर्शनके द्वारा सर्वद्रव्यों और उनकी पर्यायों को जानने और देखनेके लिये समर्थ होते हैं।
___ चार अनन्तानुबन्धी और तीन दर्शनमोहनीय इन सप्त प्रकृतियों के क्षयसे क्षायिक सम्यक्त्व होता है। सोलह कषाय और नव नोकषायों के क्षयसे क्षायिकचारित्र होता है।
क्षायिक दान, भोग, उपभोगादिका प्रत्यक्ष कार्य शरीर नाम और तीर्थङ्कर नामकर्मके उदयसे होता है । चूंकि सिद्धोंके उक्त कर्मोंका उदय नहीं है अतः इन भावोंकी सत्ता अनन्तवीर्य और अव्याबाध सुखके रूपमें ही रहती है। कहा भी है-अनन्त आनन्द, अनन्त ज्ञान, अनन्त ऐश्वर्य, अनन्तवीर्य और परमसूक्ष्मता जहाँ पाई जाय वही मोक्ष है ।
मिश्रभावके भेदज्ञानाज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुस्वित्रिपञ्चभेदाः सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाच ॥५॥
मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ये चार ज्ञान, कुमति कुश्रुत और कुअवधि ये तीन अज्ञान, चक्षुदशन अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन ये तीन दर्शन, क्षायोपशमिक दान, लाभ भोग, उपभोग और वीर्य ये पांच लब्धि, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक चारित्र और संयमासंमय ये क्षायोपशमिक भाव हैं।
अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन सर्वघाति प्रकृतियोंके उदयाभावी क्षय तथा आगामी कालमें उदय आने वाले उक्त प्रकृतियोंके निषकों का सदवस्थारूप उपशम और सम्यक्त्वप्रकृतिके उदय होने पर क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होता है। ___अनन्तानुबन्धी आदि बारह कषायोंका उदयाभावी क्षय तथा आगामी कालमें उदयमें आनेवाले इन्हीं प्रकृतियोंके निषेकोंका सदवस्थारूप उपशम और संज्वलन तथा नव नोकषायका उदय होनेपर क्षायोपशमिक चारित्र होता है।
अनन्तानुबन्धी आदि आठ कषायोंका उदयाभावी क्षय तथा आगामी कालमें उदयमें आनेवाले इन्हीं प्रकृतियोंके निषेकोंका सदवस्था रूप उपशम और प्रत्याख्यानावरण आदि सत्रह कषायोंका उदय होनेसे संयमासंयम होता है।
सूत्र में आए हुए 'च शब्दसे संज्ञित्व और सम्यग्मिथ्यात्वका ग्रहण किया गया है।
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