________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३८२ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[३१७-८ ___सातवें नरकसे निकला हुआ जीव तिर्यश्च ही होता है और पुनः नरकमें जाता है । छठवें नरकसे निकला हुआ जीव मनुष्य हो सकता है और सम्यग्दर्शनको भी प्राप्त कर सकता है लेकिन देशव्रती नहीं हो सकता। पश्चम नरकसे निकला हुआ जीव देशव्रती हो सकता है लेकिन महाव्रती नहीं । चौथे नरकसे निकला हुआ जीव मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है । प्रथम, द्वितीय और तृतीय नरकसे निकला हुआ जीव तीर्थंकर भी हो सकता है।
मध्यलोकका वर्णनजम्बूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ॥ ७ ॥ मध्यलोकमें उत्तम नामवाले जम्बू द्वीप आदि और लवणसमुद्र आदि असंख्यात द्वीप समुद्र हैं।
१ जम्बूद्वीप, १ लवणसमुद्र, २ धातकी खण्डद्वीप, २ कालोद समुद्र, ३ पुष्करवरद्वीप, ३ पुष्करवर समुद्र, ४ वारुणीवरद्वीप ४ वारुणीवर समुद्र, ५ क्षीरवर द्वीप ५ क्षीरवर समुद्र, ६ धृतवर द्वीप, ६ घृतवर समुद्र, ७ इक्षुवर द्वीप ७ इक्षुवर समुद्र, ८ नन्दीश्वर द्वीप, ८ नन्दीश्वर समुद्र, अरुणवर द्वीप, ९ अरुणवर समुद्र । इस प्रकार स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त एक दूसरे को घेरे हुये असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं । अर्थात् पच्चीस कोटि उद्धारपल्यों के जितने रोम खण्ड हों उतनी ही द्वीप-समुद्रों की संख्या है।
मेरुसे उत्तर दिशामें उत्तर कुरु नामक उत्तम भोगभूमि है। उसके मध्यमें नाना रत्नमय एक जम्बूवृक्ष है। जम्बूवृक्षके चारों ओर चार परिवार वृक्ष हैं। प्रत्येक परिवार वृक्षके भी एक लाख व्यालीस हजार एक सौ पन्द्रह परिवार वृक्ष हैं। समस्त जम्बू वृक्षोंकी संख्या १४०१२० है । मूल जम्बूपक्ष ५०० योजन ऊँचा है। मध्यमें जम्बू वृक्षके होनेसे ही इस द्वीपका नाम जम्बूदीप पड़ा। उत्तर कुरुकी तरह देवकुरुके मध्यप्ने शाल्मलि वृक्ष है। प्रत्येक वृक्ष के ऊपर रत्नमय जिनालय हैं। इसी प्रकार धातकी द्वीप में धातकी वृक्ष और पुष्करवर द्वीपमें पुष्करवर वृक्ष है।
द्वीप और समुद्रोंका विस्तार और रचनाद्विद्विविष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥ ८ ॥ प्रत्येक द्वीप समुद्र दूने दूने विस्तारवाले, एक दूसरेको घेरे हुये तथा चूड़ी के आकारवाले (गोल) हैं।
जम्बू द्वीपका विस्तार एक लाख योजन, लवण समुद्रका दो लाख योजन, धातकी द्वीपका चार लाख योजन, कालोद समुद्रका आठ लाख योजन, पुष्करवर द्वीपका सोलह लाख योजन, पुष्करवर समुद्रका बत्तीस लाख योजन विस्तार है । इसी क्रमसे स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त द्वीप और समुद्रोंका विस्तार दूना है । जिस प्रकार धातकी द्वीपका विस्तार जम्बूद्वीप और लवण समुद्र के विस्तारसे एक योजन अधिक है उसी प्रकार असंख्यात समुद्रोंके विस्तार से स्वयंभूरमण समुद्रका विस्तार एक लाख योजन अधिक है । पहिले पहिल के द्वीप समुद्र आगे आगे के द्वीप समुद्रोंको मेर हुये हैं । अर्थात् जम्बूद्वीपको लवण समुद्र, लवण समुद्रको धातकी द्वीप, धातकी द्वीपको कालोद समुद्र घेरे हुये है । यही क्रम आगे भी है।
ये द्वीप समुद्र चूड़ीके समान गोलाकार हैं। त्रिकोण, चतुष्कोण या अन्य प्राकार वाले नहीं हैं।
For Private And Personal Use Only