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३५४ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[ ११२० १ उत्पादपूर्व-इसमें वस्तुके उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या एक करोड़ है। ____२ अग्रायणीपूर्व-इसमें अंगोंके प्रधानभूत अर्थोका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या छयानवे लाख है।
३ वीर्यानुप्रवादपूर्व-इसमें बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती, इन्द्र, तीर्थंकर आदिके बलका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या सत्तर लाख है।
४ अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व–इसमें जीव आदि वस्तुओंके अस्तित्व और नास्तित्वका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या साठ लाख है।
५ ज्ञानप्रवादपूर्व-इसमें आठ ज्ञान, उनकी उत्पत्तिके कारण और ज्ञानोंके स्वामीका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या एक कम एक करोड़ है।
६ सत्यप्रवादपूर्व-इसमें वर्ण, स्थान, दो इन्द्रिय आदि प्राणी और वचनगुप्तिके संस्कारका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या एक करोड़ और छह है।
७ आत्मप्रवादपूर्व–इसमें आत्माके स्वरूपका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या छब्बीस करोड़ है।
८ कर्मप्रवादपूर्व-इसमें कर्मों के बन्ध, उदय, उपशम और उदीरणाका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या एक करोड़ अस्सी लाख है।
__९ प्रत्याख्यानपूर्व-इसमें द्रव्य और पर्यायरूप प्रत्याख्यानका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या चौरासी लाख है।
१० विद्यानुप्रवाद- इसमें पाँच सौ महाविद्याओं, सात सौ क्षुद्रविद्याओं और अष्टांगमहानिमित्तोंका वर्णन है । इसके पदों की संख्या एक करोड़ दश लाख है ।
११ कल्याणपूर्व-इसमें तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, वासुदेव, इन्द्र आदिके पुण्यका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या छब्बीस करोड़ है।
१२ प्राणायायपूर्व-इसमें अष्टांग वैद्यविद्या, गारुडविद्या और मन्त्र-तन्त्र आदिका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या तेरह करोड़ है।
१३ क्रियाविशालपूर्व-इसमें छन्द, अलंकार और व्याकरणकी कलाका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या नौ करोड़ है।
___ १४ लोकबिन्दुसार--इसमें निर्वाणके सुखका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या साढ़े बारह करोड़ है।
प्रथमपूर्व में दश, द्वितीयमें चौदह, तृतीयमें आठ, चौथेमें अठारह, पाँचवेंमें बारह, छठवेंमें बारह, सातवेंमें सोलह, आठवेंमें बीस, नौवेंमें तीस, दशमें पन्द्रह, ग्यारहवेमें दश, बारहवें में दश, तेरहवें में दश और चौदहवें पूर्व में दश वस्तुएँ है।
सब वस्तुओंकी संख्या एक सौ पञ्चानबे है। एक-एक वस्तुमें बीस-बीस प्राभूत होते हैं । सब प्राभृतोंको संख्या तीन हजार नौ सौ है।
५ चूलिकाके पाँच भेद हैं-१ जलगता चूलिका, २ स्थलगता चूलिका, ३ मायागता चूलिका, ४ आकाशगता चूलिका और ५ रूपगता चूलिका।।
१ जलगता चूलिका—इसमें जलको रोकने, जलको वर्षाने आदिके मन्त्र-तन्त्रोंका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ है।
२ स्थलगता चूलिका-इसमें थोड़े ही समयमें अनेक योजन गमन करनेके मन्त्र-तन्त्रोंका वर्णन है।
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