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३४२ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[११८ सामान्यसे मिथ्यादृष्टियों में नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीवकी अपेक्षा कालके तीन भेद होते हैं। किसी जीवका काल अनादि और अनन्त है, किसीका अनादि
और सान्त है । तथा किसीका सादि और सान्त है। सादि और सान्तकाल जघन्य अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल है।
सासादन सम्यग्दृष्टियोंमें सब जीवोंकी अपेक्षा जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल ६ आवली है। असंख्यात समयकी एक आवली होती है। संख्यात आवलियोंके समूहको उच्छ्वास कहते हैं। सात उच्छ्वासका एक स्तोक होता है। सात स्तोकका एक लव होता है । ३८३ लवकी एक नाली होती है। दो नालीका एक मुहूर्त होता है अर्थात् ३७७३ उच्छ्वासोंके समूहको मुहूर्त कहते हैं। एक समय अधिक आवलीसे अधिक और एक समय कम मुहूर्त के समयको अन्तर्मुहूर्त कहते हैं। इसके असंख्यात भेद हैं।
सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल पल्यके असंख्यातवें भाग हैं । एक जीयकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त ही है। असंयतसम्यग्दृष्टिके नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल कुछ अधिक तेतीस सागर है । क्योंकि कोई पूर्वकोटि आयुवाला मनुष्य आठ वर्ष और अन्तर्मुहूर्त के बाद सम्यक्त्वको प्राप्त कर विशेष तपके द्वारा सर्वार्थसिद्धिमें उत्पन्न हो सकता है। वही जीव सर्वार्थसिद्धिसे मनुष्य भवमें आकर आठ वर्षके बाद संयम ग्रहण करके मोक्ष प्राप्त कर लेता है । इस प्रकार कुछ अधिक तेतीस सागर काल हो जाता है।
देशसंयतके नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल कुछ कम एक पूर्वकोटि है।
. प्रमत्त और अप्रमत्त जीवोंमें नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल एक समय है। क्योंकि कोई प्रमत्तगुणस्थानवी जीव अपनी आयुके एक समय शेष रहनेपर अप्रमत्तगुणस्थानको प्राप्तकर मरण करता है। इसी प्रकार अप्रमत्तगुणस्थानवर्ती जीव अपनी आयुके एक समय शेष रहनेपर प्रमत्तगुणस्थानको प्राप्तकर मृत्युको प्राप्त होता है। इस प्रकार दोनों गुणस्थानों में एक जीवका जघन्यकाल एक समय है। और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूते है।
चारों उपशमकोंके नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। क्योंकि चारों उपशमक एक साथ ५४ तक हो सकते हैं और यह सम्भव है कि उपशमश्रेणी में प्रवेश करते ही सबका एक साथ मरण हो जाय । इसलिये जघन्यसे एक समय काल बन सकता है।
प्रश्न-इस प्रकारसे मिथ्याष्टिका काल भी एक समय क्यों नहीं होता?
उत्तर-जिस जीवने मिथ्यात्वको प्राप्त कर लिया है उसका अन्तमुहूर्त के बीचमें मरण नहीं हो सकता । कहा भी है कि सम्यग्दर्शनसे मिथ्यात्वको प्राप्त कर लेनेपर अनन्तानुबन्धी कषायोंका एक आवली पर्यन्त पाक नहीं होता है और अन्तर्मुहूर्त के मध्यमें मरण भी नहीं होता है।
सम्यगमिथ्यादृष्टि जीव मरणसमयमें उस गुणस्थानको छोड़ देता है अतः उसका भी काल एक समय नहीं है। असंयत और संयतासंयत जीव भी अन्तर्मुहूर्तके भीतर मरण नहीं करता अतः इसका भी काल एक समय नहीं है।
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