Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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३६.
तत्वार्थसूत्रे भूता पृथिव्यादिवत् प्रतिभासमानाः जीवत्वेन दुर्लक्ष्या भवन्ति पनकसूक्ष्मम्-वर्षाकाले भूमिकाष्ठादौ समुत्पन्नं पञ्चवर्णपनकाख्यसूक्ष्मम् बीजहरितं चेति तत्र बीजसूक्ष्मम्-शाल्यादि तुषमुख यस्मादंकुरः समुत्पद्यते। हरितसूक्ष्मम्-नवीनमुत्पद्यमानम् भूमिसवर्णम् तद्वत् कान्तिमत्तया दुर्लक्ष्यम् अण्डसूक्ष्मम्-मक्षिका-पिपीलिका-गृहगोधिका-कृकलासाद्यण्डकमवगच्छेत् । स्नेहसूक्ष्मः आदिना पुष्पसूक्ष्मम् प्राणिसूक्ष्मम् उत्तिङ्गसूक्ष्मम् पनकसूक्ष्मः बीजसूक्ष्मः हरितसूक्ष्मः अण्डसूक्ष्मश्च तत्र अवश्यायहिमकुज्झटिकादिः स्नेहसूक्ष्मः स्नेहकायपदेन उदुम्बरादि पुष्पसदृशः सूक्ष्मप्राणी गृह्यते, सर्वदा संचरमाणो न तु स्थितः कदाचित् कुन्थ्वादिकः प्राणिसूक्ष्मः सूक्ष्मकीटिकादिवृन्द उत्तिअसूक्ष्मः एवं पनकसूक्ष्मे वर्षाकालिकपञ्चवर्णजीवविशेषः बीजसूक्ष्मः शाल्यादितुषमुखः हरितसूक्ष्मो भूमिसवर्णः अण्डसूक्ष्म-पिपीलिकादिरवसेयः ।सूत्र ११॥
मूलसूत्रम्--"बायरा अणेराविहा पुढवीकायाइया ।सूत्र १२॥ छाया--"बादरा अनेकविधाः पृथिवीकायादिकाः ।सू० १२॥
दीपिका---पूर्वं संसारिणो जीवा बादरा इत्युक्तत्वात् सम्प्रति तेषां बादरजीवानां स्वरूपाणि प्ररूपयितुमाह-'बायरा अणेगविहा पुढवीकायाइया" इति बादराः जीवाः अनेकविधा बहुप्रकारकाः सन्ति तद्यथा-पृथिवीकायादिकाः पृथिवीकायाः आदिना अप्कायाः तेजस्कायाः वायुकायाः वनस्पतिकायादयश्चावगन्तव्याः एतेषां सूक्ष्मत्वेऽपि बादरत्वस्यापि सद्भावात् ॥सूत्र १२॥
नियुक्तिः-पूर्वसूत्रे सूक्ष्मजीवानामष्टविधत्वं प्रतिपादितं सम्प्रति बादरजीवानां भेदं प्रतिपादयितुमाह-'बायरा अणेगविहा पुढवीकायाइया' इति बादराः जीवाः अनेकविधा प्रज्ञप्ताः पर दिखाई नहीं देते, वे कुंथु आदि प्राणिसूक्ष्म कहलाते हैं। छोटी-छोटी कीड़ियों आदि का समूह-कीडीनगरौँ उत्तिंग सूक्ष्म कहलाता है। ये जीव इतने छोटे होते हैं कि बहुत से इकट्ठे होने पर भी पृथ्वी के रूप-रंग के होने के कारण जीव के रूप में लक्ष नहीं पड़ते । वर्षाकाल में भूमि
और काष्ठ आदि के ऊपर पाँच वर्ण की जो काई-(नील) फूल जम जाती है, वह जब सहज ही दिखाई नहीं देती तो पनकसूक्ष्म कहलाती है । शालि आदि के पुष्प का मुख, जिससे अंकुर की उत्पत्ति होती है, उसे बीजसूक्ष्म कहते हैं। नया-नया उत्पन्न होने वाला जमीन के रंग का हरितकाय हरित सूक्ष्म कहलाता है, जो साधारणतया दिखाई नहीं देता। मक्खी, चिउंटी, छिपकली, गिरगिट आदि के अत्यन्त छोटे-छोटे अण्डों को अण्ड सूक्ष्म कहते है ॥११॥
सूत्राथे 'वायरा अणेगबिहा'—इत्यादि । बादर जीब पृथ्वीकायिक आदि के भेद से अनेक प्रकार के हैं ॥१२॥
तत्त्वार्थ दीपिका-पहले संसारी जीवों का एक भेद बादर कहा जा चुका हैं-पृथ्वीकायिक आदि बादर जीव अनेक प्रकार के हैं, यथा-पृथिवीकायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक । इनमें सूक्ष्मता होने पर भी बादरता भी पाई जाती है ॥१२॥
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧