Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तत्वार्यसूत्रे उभेदः उद्भित् सम्पदादित्वात् क्विप् तस्माज्जाता उद्भिज्जाः, यथा रत्नपाषाणादिकं भत्तवा केनचिद् दर्दुरो निष्काशित इति प्रसिद्ध अन्यत्सर्वं स्पष्टम् ॥सूत्र १०॥
मूलम्--"अट्टविहा सुहुमा सिनेहकायाइया ॥सूत्र ११॥ छाया . "अष्टविधाः सूक्ष्माः स्नेहकायादयः-" ॥११॥
दीपिका----पूर्वं तावत् सूक्ष्मबादरभेदेन संसारिजीवानां वैविध्यस्योक्तत्वात् सम्प्रति तत्र सूक्ष्माणां भेदान्-स्वरूपञ्च प्ररूपयितुमाह-'अट्ठविहा सुहुमा सिनेहकायाइया' इति अष्टविधाः अष्टप्रकारकाः सूक्ष्माः जीवाः स्नेहकायादिकाः स्नेहकायः आदिना पुष्पसूक्ष्मः प्राणिसूक्ष्मः उत्तिंगसूक्ष्मः पनकसूक्ष्मः बीजसूक्ष्मः, हरितसूक्ष्मः अण्डसूक्ष्मश्चेति ।। तथाचोक्तम्--सिणेहं पुप्फसुहमं च पाणुत्तिगं तहेव य ।
- पणगं बीयहरियं च अण्डसुहुमं च अट्ठमं ॥ छाया---स्नेहं पुष्पसूक्ष्मञ्च प्राण्युत्तिङ्गं तथैव च ।
पनकं बीजहरितं च अण्डसूक्ष्मं च अष्टमम् ॥ स्नेहम् स्नेहसूक्ष्मम् , अवश्यायहिमकुञ्झटिकादिरूपम् अत्र स्नेहपदेन अप्कायविशेषः सूक्ष्मः स्नेहकायोऽपि गृह्यते, पुष्पसूक्ष्मम्-उदुम्बरादिपुष्पसदृशम् सूक्ष्मम् प्राणिसूक्ष्मम् यः प्राणी संचरमाण एव सर्वदा लक्ष्यते न तु स्थितो लक्ष्यते स चासौ सूक्ष्मः कुंवादिकः उत्तिङ्गसूक्ष्मम्-सूक्ष्मकीटिकादीनाम् वृन्दम् कीटिका नगरादि, कीटिकादयः सूक्ष्माः प्राणिनो घनीभूता अपि पृथिव्यादिवत् प्रतिभासजाः जीवत्वेन दुर्लक्ष्या भवन्ति, पनकसूक्ष्मम्-वर्षाकाले भूमिजीव उत्पन्न होते हैं। बे उद्भिज्ज कहे गये हैं जैसे यह प्रसिद्ध है कि किसी ने पाषण आदि को भेदन करके मेंढक निकाल दिया ॥१०॥
सूत्रार्थ-अट्टविहा सुहमा,—इत्यादि । स्नेहका आदि आठ प्रकार के सूक्ष्म है ॥११॥
तत्त्वार्थदीपिका—पहले संसारी जीवों के दो भेद कहे गए थे-सूक्ष्म और बादर। अब सूक्ष्म जीवों के भेद और उनके स्वरूप की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैंस्नेहकाय आदि आठ प्रकार के सूक्ष्म है (१) स्नेह कायसूक्ष्म (२) पुष्पसूक्ष्म (३) प्राणिसूक्ष्म (४) उत्तिंग सूक्ष्म (५) पनक सूक्ष्म (६) बीज सूक्ष्म (७) हरित सूक्ष्म और (८) अण्डसूक्ष्म ।
इनका अर्थ इस प्रकार है-ओस, हिम, कुञ्झटिका (धूवर) आदि स्नेहसूक्ष्म कहलाता है, यहाँ स्नेह' शब्द से जलका ग्रहण किया गया है । गूलर आदि के सूक्ष्म पुष्प सदृश पुष्पसूक्ष्म कहलाते है । जो प्राणी चलने-फिरने से ही दिखाई दे और स्थित होने पर दिखाई न दे, वह प्राणिसूक्ष्म कहलाता है, जैसे कुन्थु आदि । छोटी-छोटी कीड़ियों का समूह कीड़ी नगरा-उत्तिंग सूक्ष्म है । ये प्राणी घनीभूत होने पर भी पृथ्वी आदि के समान होने के कारण सहज दिखाई नहीं
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧