________________
स्वयम्भूस्तोत्र-तत्त्वप्रदीपिका
७६
८४
१०३
११५
श्री पद्मप्रभ जिन स्तवन श्री सुपार्श्व जिन स्तवन श्री चन्द्रप्रभ जिन स्तवन श्री सुविधि जिन स्तवन श्री शीतल जिन स्तवन श्री श्रेयांस जिन स्तवन श्री वासुपूज्य जिन स्तवन श्री विमल जिन स्तवन श्री अनन्त जिन स्तवन
११० श्री धर्म जिन स्तवन श्री शान्ति जिन स्तवन श्री कुन्थु जिन स्तवन
१२४ श्री अर जिन स्तवन
१२८ श्री मल्लि जिन स्तवन
१४३ श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन
१४७ श्री नमि जिन स्तवन श्री नेमि जिन स्तवन श्री पार्श्व जिन स्तवन श्री वीर जिन स्तवन
परिशिष्ट-१ स्वयम्भूस्तोत्र श्लोक अनुक्रमणी
परिशिष्ट-२ स्वयम्भूस्तोत्रान्तर्गत विशिष्ट शब्द अनुक्रमणिका
परिशिष्ट-३ सन्दर्भ ग्रन्थ सारिणी
१९४ नोट-पृष्ठ ३६ पर तृतीय श्लोक के प्रारंभ में 'या' के स्थान में
१५२
.
१८३
य' पढ़ें।
इसी प्रकार पृष्ठ ६६ पर 'अष्टसहस्री की कारिका ८९ की व्याख्या में' के स्थान पर 'आप्तमीमांसा की कारिका ८९ की अष्टसहस्री टीका में पढ़ें।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org