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खुदाई हुई जिससे एक प्राचीन जैन स्तूप व उसके पास पास सन् १८६०-६१ तक कोई ११० जैन शिला लेखों और इनके अतिरिक्त कई तीर्थंकरों को मूर्तियाँ व शिल्पकारी के अन्य नमूनों का पता चला । शिला लेख बहुतायत से कुशानवंशी राजाओं के समय के हैं जिनपर ५ से ६८ तक को वर्षों के अंक पाये जाते हैं । ये वर्षे किसो इंडोसिथियन संवत् की अनुमान की जाती हैं। सर विन्सेन्टस्मिथ इन लेखों का समय ईसा के पूर्व पहली शताब्दि से लगाकर ईसा की दूसरी शताब्दि तक मानते हैं । सब से नया लेख वि. सं० ११३४. ( ई० सं० १०७७ ) का है। अतः ये लेख मथुरा में जैन धर्म के लगभग ग्यारह शताब्दियों के ऐतिहासिक तारतम्य का पता देते हैं । इन लेखों में प्राचीनतम लेख से भी यहां का स्तूप कई शताब्दी पुराना है । एक खगासन प्रतिमा की पोठिका पर लेख है कि 'यह 'अर' (अरहनाथ ) तीर्थंकर की प्रतिमा सं० ७८ में इस देवों द्वारा निर्मापित स्तूप की सीमा के भीतर स्थापित की गई। इस पर फुहरर साहब लिखते हैं:
The stupa was so ancient that at the time when the inscription was incised, its origin had been forgotten. On the evidence of the characters, the date of the inscription may be referred with certainty to the Indo Scythian era and is equivalent to A D.
1. Jain Stupa and other antiquities of Mathura
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