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झांसी।
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देवगढ़ में हो जाखलोन के बुन्देलों के राजा धर्मनगढसिंह राज्य को त्याग, आकर रहे थे जिनका परलोकवास सन् ई० १२६४ में हुआ था। उस समय देवगढ़ एक माननीय स्थान था और इसी कुटुम्ब के अधिकार में था । इसी कुटुम्ब ने दतिया के निकट का किला बनवाया था। पूर्व की ओर जो जैन मंदिर हैं वे भिन्न २ समय के बनवाए हुए मालूम होते हैं। इनमें जो मुख्य मन्दिर है उसमें एक बड़ा दालान है जो ४२ फुट ३ इंच वर्ग है इसमें छः छः खंभों की छः पंक्तियां हैं। इसके मध्य में एक ऊंची वेदी है जो चार मध्य के स्तम्भों पर खड़ी हुई है जिसके पीछे भीत बाहर की ओर है । इस पर नग्न जैन मूर्तियां बहुत सी हैं इनमें १ मूर्ति ऋषभदेव की है। इस दालान के सामने १६॥ फुट की दूरी पर मंडप है जिसके चार बड़े २ स्तम्भ हैं। इनमें से एक स्तम्भ पर जनरल कनिंघम ने एक बहुत ही मूल्यवान और जानने योग्य लेख राजा भोजदेव का पाया था जो संवत् ११६ या शाका सं० ७८४ का है। इससे प्रसिद्ध है कि धारा के राजा भोज सन् ८६२ में थे ऐसा डा० फुहरर ने अनुमान किया है। राजघाटी के पास एक स्पष्ट खुदा हुआ लेख = लाइन का है जिससे मालूम होता है कि इसको कीर्तिवर्मा के मन्त्री वत्सराज ने बनवाया था। यह किला भी कीर्तिवर्मा के कारण कीर्तिगिरि दुर्ग कहलाता था। इसका संवत् ११५४ व सन् १०६७ है। दूसरे जैन मन्दिर बहुत जानने योग्य नहीं हैं। इनमें
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