Book Title: Sanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Jain Hostel Prayag

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Page 136
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२-फर्रुखाबाद (गजेटियर छपा १९११) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-पश्चिम में एटा मैनपुरो जिला, दक्षिण और दक्षिण पूर्व में इटावा, कानपुर, पूर्व मे हरदोई, उत्तर में शाहजहांपुर, बदाऊं । यहां १६८४ वगमील स्थान है। (१) कम्पिला-(यह श्री विमलनाथ तेरहवें तीर्थंकरकी जन्मभूमि हैं। मंदिर है-हर वर्ष यात्रा होती है। ग्राम में इधर उधर प्राचीन जैन-मूर्तियां मिलती हैं) यह राजा द्रुपद का स्थान है । मथुरा के राजाओं और सत्रपों (यूनानी हिन्दी राजा) के नाम के सिक्के सन ई० से २०० से १०० वर्ष पूर्व तक के सोन किसा में बहुधा मिलते हैं (जर्नल रायल एसि० सो० १६०८-१६०६)। वीरसेन के अधिकार में इस जिले का बहु भाग था क्योंकि उसके नाम के सिक्के बहुधा पाए जाते हैं ( जन० रा० ए० सो० १६०० सफा ११५) ___ वीरसेन के सिक्के कानपुर जिले में जाजमऊ तक पाए गए हैं । तिखा से दक्षिण पूर्व , मील जोखत स्थान में वीरसेन के नाम का एक शिला लेख सन् १८८६ में मिला है जिस पर संवत १३ या ११८ अंकित है (R, Burn ibd p. 552)। For Private And Personal Use Only

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