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सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक ।
में रहा जिन राजाओं को सत्रप कहते थे । यही सत्रप शायद शाक लोग हैं। इनमें बहुत ही प्रसिद्ध सत्रप सोदास हुआ है जो सन ई० से ११० वर्ष पूर्व हुआ है। मथुरा में सत्रप - सोदास के नाम का एक शिला लेख है । यह सत्रप राजीवल का पुत्र था जिसके पहले सत्र होगन तथा हगमाश हो गए थे ।
सन ई० ४५ में कुशान राजा कडप्लूसी प्रथम राजा हुआ । फिर कडल सी द्वितीय करीव ८५ ई० में राजा हुआ । उसके पीछे सन ई० १२० में कनिष्क राजा हुआ । कनिष्क ने अपनी राज्यधानी पुरुषपुर (वर्तमान पेशावर) को बनाया । आखरी दिनों में यह बौद्धमती हो गया। सन ई० १५० में हविस्क ने राज्य किया फिर वासुदेव राजा हुआ कुशानों के राज्य में मथुरा एक समृद्धिशाली नगर था जैन और बोद्ध की मूर्तियों पर जो प्रतिष्ठा कारकों के लेख मिलते हैं वे सब बणिक जाति के हैं ।
इससे यह प्रगट है कि यह नगर व्यापार का बड़ा केन्द्र था । भारतीय कथाओं की प्रसिद्ध पुस्तक पंचतंत्र के पहले भाग में एक वणिक की कथा है जो अपने बैलों
१ ( नोट - जान्हर्टल जर्मन विद्वान ने प्रमाणित किया है कि इसके रचयिता जैन थे। इस पंचतंत्र का उल्था पहलवी भाषा में खुशरो अनुशीरवा की श्राज्ञा से सन ५३१ के करीब किया गया था। संभव है यह पुस्तक पहली शताब्दी के करीब लिखी गई हो ।
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