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मथुरा।
को लेकर दक्षिण के महिलारोप्य नगर से चलता है और मथुरा को जाने वाले व्यापारी मंडल (जो घोड़ो और ऊटों पर सामान लाद कर चलते थे) के साथ हो जाता है। अभी तक जो शिला लेख राजा कनिष्क, हुविष्क, व वासुदेव के नाम के निकले हैं वे सब ७१ हैं-इनमें से ५६ मथुरा से निकले हैं। इनमें से ४३ शिला लेख जैनियों के हैं जो कंकालीटीला से निकले हैं-सब ब्राह्मी लिपि में हैं। __ सन् ई० ३२०-३२६ में चंद्रगुप्त ने, फिर समुद्रगुप्त ने, फिर ४१५ ई० में चंद्रगुप्त द्वि० ने राज्य किया। जब फाहियान चीनयात्री आया था, बौद्ध धर्म उन्नति पर था । गुप्तों के पीछे हूणों ने राज्य किया। ६२० ई० के करीब राजाहर्ष वर्द्धन मथुरा का स्वामी हो गया। तथा सन् ई० ७२५ से १०३० ई० तक मथुरा भिनमाल और कन्नौज के गुर्ज-प्रतिहार राजाओं के अधिकार में रहा। ___ मथुरा ही के प्रमाणों से यह सिद्ध है कि जैन और बौद्ध धर्म के साथ २ मथुरा में नागदेव की पूजा भी प्रचलित थी।
(१) चौमुहा-देहली जाती हुई बड़ी सड़क पर मथुरा से १० मील । चौमुखाजैन स्तम्भ का आसन यहां मिला हैइसी से इसको चौमुहा कहते हैं । कंकाली टीले के जैनस्मारक पुराने किले की जगह, सीतलघाटी तथा रानी का मंडी में मिले हैं।
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