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मथुरा।
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सन् १९११–१२ की रिपोर्ट सफा १३३ में वर्णनहै कि प्राचीन वस्तुओं में से जो यहां निकली हैं, एक खंडित चौमुखी जैन मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है । इसका नाम है प्रतिमा सर्वतो भद्रिका । इस पर ब्राह्मी अक्षरों में कुशान समय का खंडित लेख है जिसके अक्षर ऐसे पढ़े जाते हैं:"खाको वाच (कस्य) सूर्यतो संदोसस्य निर्वर्तना ...रकस्य भट्टि रामोस्या"।
मथुरा के कंकाली टीले के सम्बन्ध में डा० फुहरर ने लिखा है कि यहां सन् १८०६ में खुदाई करने पर दिगम्बर जैनियों की १२ बड़ी मूर्तियां कनिष्क, हविष्क और वासु. देव के समय की निकलीं, तथा दो मूर्तियां श्री पद्यप्रभु की संवत् १०३६ व ११३४ की श्वेताम्बर जैनों की निकली हैं । मथुरा के अजायबघर में जितनी जैन मूर्तियां हैं उनमें अधिकांश दि० जैनों की हैं और वे बहुत प्राचीन हैं । लखनऊ के अजायबघर में भी बहुत सी दि० जैन प्राचीन मूर्तियां हैं, जो पहली शताब्दी की हैं।
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