Book Title: Sanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Jain Hostel Prayag

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Page 144
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगरा। १०३ apparently Jain) यह स्थान सन् १८७१ में खुदाया गया था । (A. S. N. I. IV 221.) (३) चांदवड़-फीगेज़ाबाद से दक्षिण पश्चिम ३ मील । यह बड़ी ऐतिहासिक जगह है । मीलों तक पुराने मन्दिरों के खंडहर हैं। (नोट-जांच होनी चाहिये) (४) कगरल-तहसील खैरागढ़-आगरा से दक्षिण पश्चिम १६ मील । यह स्थान बहुत बड़ी प्राचीनता का है। वर्तमान ग्राम एक पुराने किले के अंशों से बने हुए टीले पर बसा है। यहां प्राचीन पाषाण व सिक्के बहुधा मिलते रहते हैं परन्तु अभी तक खुदाई का कोई उद्योग नहीं किया गया। ( यहां भी जांच होनी चाहिये )। (५) कोटला-मैनपुरी के किनारे के पास। यह जादो वंश का कोटला राज्य है। (६) सरेन्ध-तहसील खैरागढ़ । आगरा से दक्षिण पश्चिम २४ मील । सड़क के पास पुराने किले के भाग हैं। ____ डाक्टर फुहरर की रिपोर्ट से विदित हुआ कि आगरा किले के नदी तरफ के द्वार के बाहर किले और नदी के बीच में चौखंटे वर्ग काले पाषाण के कई स्तंभ मिले हैं जिन पर जैनियों के २० वे तीर्थंकर श्री मुनि सुव्रतनाथ की मूर्ति है और कुटिल अक्षरों में लेख सं० १०६३ व सन् १००६ का है। इसमें For Private And Personal Use Only

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